सुप्रीम कोर्ट तेलंगाना सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में राज्यपाल तमिलिसाई सौंदर्यराजन पर विधानसभा से पारित हो चुके 10 बिलों पर लंबे वक्त से बैठे रहने की शिकायत की गई थी। हालांकि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि राज्यपाल के पास कोई विधयेक लंबित नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इन बिलों को क्लियर या रिटर्न करने की कोई टाइमलाइन नहीं तय की।
कई राज्यों में सत्ताधारी विपक्षी दलों ने अपने-अपने यहां के राज्यपालों के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। गवर्नर्स पर जान-बूझकर बिलों को मंजूरी या वापस करने में देरी के आरोप लगते हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का अनुच्छेद 200 की याद दिलाना बेहद अहम है।
‘मैंने पिछले 40 साल में आपके जैसा खराब एसजी नहीं देखा
तेलंगाना के वकील दुष्यंत दवे ने बेंच पर जनरल रूलिंग का दबाव बनाया। उन्होंने कहा, ‘राज्यों की चुनी हुई सरकारें राज्यपाल की दया पर नहीं छोड़ी जा सकतीं।’ दवे ने भी आर्टिकल 200 का जिक्र करते हुए कहा कि मध्य प्रदेश और गुजरात के राज्यपाल, जहां बीजेपी की सरकारें हैं, महीने भर के भीतर बिल क्लियर कर देते हैं। इसपर एसजी और दवे के बीच तूतू-मैंमैं शुरू हो गई। एसजी ने कहा कि अब इस बारे में कोर्ट को टिप्पणी करने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि ‘मैं तेलंगाना के वकील जितना चिल्ला नहीं सकता।’ इसपर दवे ने ऊंची आवाज में कहा, ‘मैंने पिछले 40 साल में आपके जैसा खराब एसजी नहीं देखा। आप मुझसे एलर्जिक है, मैं आपसे एलर्जिक हूं।’
क्या कहना है संविधान (costitution)का अनुच्छेद 200?
बेंच ने अनुच्छेद(article) 200 के पहले प्रावधान का जिक्र किया। अदालत ने कहा कि राज्यपालों को इसके ‘एज सून एज पॉसिबल’ एक्सप्रेशन का ध्यान रखना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 200 के प्रोविजो 1 में लिखा है, ‘राज्यपाल विधेयक को सहमति के लिए प्रस्तुत करने के बाद यथाशीघ्र उसे वापस कर सकता है, यदि वह धन विधेयक नहीं है।’ अनुच्छेद 200 राज्य विधायिका से पारित विधेयकों को मंजूरी देने के विषय में है।