दुर्ग। CG NEWS : छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में 10 साल पहले जेके लक्ष्मी सीमेंट फैक्ट्री में हुए अग्निकांड में सभी आरोपियों को न्यायालय ने बेकसूर पाते हुए बरी कर दिया है। एडवोकेट बीपी सिंह ने इस फैसले को छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा फैसला बताया है। उन्होंने कहा कि इस अग्निकांड में 800 करोड़ रुपए के नुकसान का दावा किया गया था। पुलिस ने गांव के भोले-भाले बेकसूर ग्रामीणों को फंसाया, लेकिन उन्हें आज न्याय मिला है।
वरिष्ठ अधिवक्ता बीपी सिंह ने कहा कि 4 अप्रैल 2013 को नंदनी थाना क्षेत्र के मलपुरी खुर्द स्थित फैक्ट्री के अंदर बड़ा हादसा हुआ था। कुछ उपद्रवियों ने फैक्ट्री के अंदर आग लगा दिया था। इसमें 40 से अधिक गाड़ियों को जला दिया गया था। जेके लक्ष्मी के तत्कालीन एमडी डीके मेहता ने इस घटना में 800 करोड़ रुपए के नुकसान का दावा किया था। अग्निकांड को रोकने के लिए जामुल, नंदनी, सुपेला, छावनी, पुलगांव, धमधा सहित 8 थानों से 200 जवानों का बल पहुंचा था। मामला इतना बड़ा हो गया था कि तत्कालीन कलेक्टर ब्रजेश मिश्रा, एसपी आनंद छाबड़ा ने खुद कमान संभाली थी। उनके निर्देश पर सीएसपी रबींद्र उपाध्याय सहित टीआई, विशाल सोम, बृजेश कुशवाहा, एसआर पठारे, एसआई पीपी अवधिया सहित अन्य अधिकारी पहुंचे थे। आगजनी में पुलिस वालों ने आरोप लगाया कि उपद्रवियों ने आग लगाने के साथ पुलिस अधिकारियों को मारा, उनके कपड़े फाड़े और उन्हें जिंदा जलाने की कोशिश की। इसके बाद पुलिस ने इस मामले में 52 लोगों के खिलाफ नामजद और 200 से अधिक के खिलाफ संदिग्ध के रूप में मामला दर्ज किया था। पुलिस ने हत्या का प्रयास, लूट, बलवा, डकैती सहित गंभीर धाराओं के तहत 8 प्रकरण और 13 केस सामान्य सहित कुल 21 प्रकरण दर्ज किए थे।
अधिवक्ता बीपी सिंह ने बताया कि इस मामले में जिन लोगों को पुलिस ने आरोपी बनाया वो पूरी तरह से बेकसूर थे। जब जेके लक्ष्मी सीमेंट फैक्ट्री स्थापित हो रही थी तो तत्कालीन कलेक्टर ब्रजेश मिश्रा, जोगी कांग्रेस के नेता और ग्रामीण वीरेंद्र के बीच 7 नवंबर 2012 को एक एमओयू हुआ था। इसमें यह तय हुआ था कि जिन ग्रामीणों की जमीन अधिग्रहित की जाएगी उनको फैक्ट्री में नौकरी दी जाएगी। जब फैक्ट्री बन गई तो कंपनी एमओयू से मुकर गई। इसलिए गांव के लोग पिछले दो तीन महीने से फैक्ट्री के बाहर बैठकर शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांग को लेकर आंदोलन कर रहे थे।
मजदूर को मारकर 25 फिट नीचे दबा दिया गया था
अधिवक्ता बीपी सिंह ने बताया कि फैक्ट्री के अंदर जो दंगा हुआ वो फैक्ट्री प्रबंधन की लापरवाही से हुआ था। दरअसल घटना से दो दिन पहले 2 अप्रैल 2013 को तरुण बंजारे नाम के एक युवक की फैक्ट्री में काम करते समय दुर्घटना में मौत हो गई। कंपनी के लोगों ने मामले को दबाने के लिए तरुण के शव को गड्ढा करके 25 फिट नीचे दफना दिया था। जैसे ही इसकी जानकारी ग्रामीणों को हुई वो लोग गुस्से में फैक्ट्री के अंदर घुस गए। इसके बाद मामला बढ़ता गया। मजदूरों का कहना है कि उनके द्वारा आग नहीं लगाई गई। आग बीमा का लाभ लेने के लिए फैक्ट्री के लोगों ने खुद लगाई थी। मजदूर की मौत के मामले लेबर कोर्ट ने जेके लक्ष्मी सीमेंट फैक्ट्री के जिम्मेदारों को सजा भी दी है।
घटना के बाद पुलिस अधिकारी इतने गुस्से में थे कि उन्होंने घटना के समय एक भी गिरफ्तारी नहीं, लेकिन अपनी कुछ घंटे बाद देर रात गांव में घुसी और घरों में घुसकर महिलाओं बच्चों और पुरुषों को गिरफ्तार कर थाने ले गई। पुलिस ने उस रात लगभग 82 लोगों को गिरफ्तार किया था। बाद में ग्रामीणों ने जब थाने का घेराव किया और मामला बढ़ने लगा तो पुलिस ने 52 के खिलाफ एफआईआर दर्ज की और 30 लोगों को छोड़ा था।
तो वही बीएसपी कर्मी रघुनंदन साहू ने बताया कि घटना में रघुनंदन नाम का दूसरा आरोपी था। पुलिस बिना जांच किए रघुनंदन साहू के घर पहुंची। उसने बताया भी कि वो बीएसपी कर्मी है। घटना में उसका कोई हाथ नहीं है वो ड्यूटी गया था। पुलिस ने उसकी एक नहीं सुनी और उसे जेल भेज दिया। बाद में न्यायालय से उसे जमानत पर रिहा किया गया, तब जाकर उसकी नौकरी बची।
10 साल से चले आ रहा यह प्रकरण इतना उलझ गया था कि कई जजों ने इसकी सुनवाई की, लेकिन फैसला नहीं आ रहा था। पीड़ितो लंबे समय के बाद न्याय मिला।