नई दिल्ली। Chandrayaan-3 Mission : इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) ने अगस्त के महीने में चंद्रयान-3 मिशन के जरिए चांद की सतह पर विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को भेजा था. प्रज्ञान रोवर के पिछले पहिये पर भारत का राष्ट्रीय चिह्न (अशोक चिह्न) और इसरो का लोगों उकेरा गया. इसरो को उम्मीद थी कि जब रोवर चांद की सतह पर चलेगा, तो अशोक चिह्न और ISRO का लोगो चांद के सतह पर छप जाएगा, परन्तु ऐसा नहीं हो पाया।
रिपोर्ट के मुताबिक, प्रज्ञान रोवर ने जब चांद की सतह पर चहलकदमी तो उस वक्त उसके पहिये से अशोक चिह्न और इसरो के लोगो पूरी तरह से सतह पर नहीं छप पाए. भले ही इसे लोग निराशा के तौर पर देखें, मगर इसमें एक अच्छी खबर भी छिपी हुई है. दरअसल, इसके जरिए इसरो के वैज्ञानिकों को ये समझने में मदद मिल रही है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव की मिट्टी की गुणवत्ता अलग है. चांद के इस हिस्से पर लैंड करने वाला भारत पहला देश है.
दक्षिणी ध्रुव पर मौजूद हो सकता है पानी
चांद के दक्षिणी ध्रुव की मिट्टी के बारे में नई जानकारी यहां बसने और इंसानों की मौजूदगी के लिए बहुत जरूरी हो सकती है. चंद्रमा के इस हिस्से पर पहुंचने के लिए कई सारे मिशन किए जाने हैं, क्योंकि वैज्ञानिकों का मानना है कि यहां पर पानी मौजूद हो सकता है. चांद पर बसना इंसान के सबसे महत्वाकांक्षी स्पेस मिशन में से एक है. अगर चांद पर इंसानों की कॉलोनी बसती है, तो भविष्य में ये एक ऐसे बेस के तौर पर काम करेगा, जहां से सौरमंडल में अलग-अलग जगह पर जा सकते हैं.
इसरो चीफ एस सोमनाथ ने कहा है, ‘राष्ट्रीय चिह्न और इसरो लोगो के ठीक ढंग से नहीं छपने ने हमें नई जानकारी दी है. हमें पहले से मालूम था कि चांद की मिट्टी थोड़ी अलग है, लेकिन हमें पता लगाना है कि इसके ऐसा होने की वजह क्या है. चांद की मिट्टी धूलभरी नहीं है, बल्कि ये थुलथुली है. इसका मतलब है कि मिट्टी को कोई चीज थामे हुए है. हमें ये स्टडी करने की जरूरत है कि मिट्टी को थामने वाली चीज क्या है।