‘माया दर्पण’ और ‘तरंग’ जैसी फिल्में बनाने वाले डायरेक्टर कुमार शाहनी का निधन हो गया. उन्हें समानांतर सिनेमा का अग्रणी माना जाता है. उन्होंने 83 की उम्र में अंतिम सांस ली. वह पसोलिनी और टारकोवस्की जैसे महान लोगों से प्रभावित थे. उनकी कहानी बताने की अनूठी शैली ने उन्हें अलग खड़ा किया।
कुमार साहनी ने म्यूजिक और डांस के बारे में अपनी दो निजी फिल्मों- ‘ख्याल गाथा ‘(1989) और ‘भवन्तराना’ (1991) में रोजमर्रा की जिंदगी को दिखाया. ‘ख्याल गाथा’ में, उन्होंने ख्याल शैली के बारे में ऐतिहासिक और आधुनिक कहानियों की तुलना की। साल 1997 में कुमार साहनी की ‘चार अध्याय’ रिलीज हुई, जो रविंद्रनाथ टैगोर के 1934 के उपन्यास पर आधारित थी.कुमार साहनी ने न सिर्फ नेशनल अवॉर्ड जीते बल्कि अलग-अलग समय में उन्होंने 3 फिल्मफेयर अवॉर्ड भी जीते. साल 1973 में आई फिल्म ‘माया दर्पण’, 1990 में आई ‘ख्याल गाथा’ और 1991 में आई ‘कस्बा’ के लिए उन्होंने उन्होंने फिल्मफेयर अवॉर्ड्स जीते. साल 2004 के बाद उन्होंने फिल्में बनाना छोड़कर लिखने-पढ़ाने का काम शुरू किया।
फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) से पढ़ाई
कुमार शाहनी ने पुणे में फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) से पढ़ाई की। वह निर्देशक ऋत्विक घटक के पसंदीदा छात्रों में से एक माने जाते थे. बाद में, शाहनी फ्रांस गए और फिल्ममेकर रॉबर्ट ब्रेसन को उनकी फिल्म ‘यूने फेम डूस’ बनाने में हेल्प की. वह ऋत्विक घटक और रॉबर्ट ब्रेसन को अपना गुरु मानते थे। कुमार शाहनी ने निर्मल वर्मा की कहानी पर आधारित ‘माया दर्पण’ बनाई थी. इस फिल्म को बेस्ट फीचर फिल्म की कैटेगरी में नेशनल फिल्म अवॉर्ड मिला था. कुमार शाहनी ने ‘तरंग’, ‘ख्याल गाथा’, ‘कस्बा’ और ‘चार अध्याय’ समेत कई सामांतर फिल्मों को डायरेक्ट किया था।