भोपाल। BIG NEWS : मध्य प्रदेश में कांग्रेस बीजेपी को घेरने का एक भी मौका नहीं छोड़ रही है। आए दिन पार्टी के नेता और कार्यकर्त्ता जनता के साथ हो रहे अत्याचार, मंगाई, बेरोजगारी और घोटाले सहित अन्य मुद्दों को लेकर बीजेपी के खिलाफ हल्ला बोल कर रहे है। इसी कड़ी में आज कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह ने सरकार और वीडी शर्मा पर तीखा हमला करते हुए, वीडी शर्मा को नपुंसक बताया है। दिग्विजय ने कहा कि वीडी शर्मा के नपुंसक होने पर मुझे खेद है।
राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने पत्रकार वार्ता में बताया की मौजूद हम सब विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि और सामाजिक कार्यकर्ता छतरपुर और बुंदेलखंड में हो रही घटनाओं से चिंतित हैं। इसलिए छतरपुर की घटना को समग्रता से देखने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा पन्ना जिला मुख्यालय में ब्लड बैंक के अधिकारी एक मुसलमान का खून हिंदू को चढ़ाने से मना कर देते हैं। जिसका वीडियो वायरल हो रहा है। दमोह जिले में हटा में हिंदुओं को आव्हान किया जाता है कि वे मुसलमानों की दुकानों से समान न खरीदें। इस पृष्ठभूमि में छतरपुर की घटना को देखे जाने की जरूरत है। इस संबंध में छतरपुर गए छ: दलीय जांच दल की रिपोर्ट के मुख्य बिंदु प्रस्तुत हुए हैं: जांंच दल में पूर्व सांसद कंकर मुंजारे, पूर्व मंत्री राजा पटेरिया, माकपा राज्य सचिव जसविंदर सिंह, भाकपा राज्य सचिव मंडल सदस्य शैलेंन्द्र कुमार शैली, राजद के प्रदेशाध्यक्ष मोनू यादव, सपा के दशरथ यादव, समानता दल के राकेश कुशवाहा और रिटायर्ड अतिरिक्त श्रमायुक्त आर जी पांडेय शामिल थे। जिसमे रिपोर्ट इस प्रकार है:-
(1) छतरपुर शहर में 21 अगस्त को दो बार लाठीचार्ज हुआ। पहले अनुसूचित जाति के संगठनों के प्रदर्शन पर और फिर मुस्लिम समुदाय के प्रदर्शन पर। इससे प्रशासन की असंवेदनशीलता, अपरिपक्कता और गैर जिम्मेदाराना आचरण साफ दिखाई देता है, कि आंदोलनों को शांतिपूर्वक तरीके से हैंडल करने की क्षमता पर प्रश्रचिन्ह लगाता है।
(2) मुस्लिम समुदाय के प्रदर्शनकारी ज्ञापन के माध्यम से पैगंबर मोहम्मद पर की गई टिपणी के विरोध में एफ आइ आर दर्ज करवाना चाहते थे। यदि उनका ज्ञापन ले लिया होता तो प्रदर्शन शांतिपूर्वक निबट सकता था मगर ज्ञापन न लेकर उनसे चार दिन बाद आने की कहना ही असंवेदनशीलता और गैर जिम्मेदाराना आचरण है जो प्रदर्शनकारियों को शांत करने की बजाय उत्तेजित कर सकता था और वह हुआ भी।
(3) इसलिए पुलिस और प्रशासन के इस आचरण की न्यायक जांच होनी चाहिए। इसके साथ ही हम घायल पुलिसकर्मियों के प्रति संवेदनाएं व्यक्त करते हुए उस पूरे उपद्रव की उच्च स्तरीय जांच की मांग करते हैं ताकि अपराधी तत्वों की पहचान हो सके।
(4) पुलिस द्वारा मुस्लिम समुदाय के अपराधियों को घेर कर पूरे बाजार में उन्हें पीटते हुए जुलूस निकालना और उनसे आपत्तिजनक नारे लगवाना, पुलिस हमारी बाप है बेहद खतरनाक है। पुलिस जनता की सेवा और सुरक्षा के लिए है। जनसेवक है बाप नहीं। यह जनता में पुलिस के आतंक को बढ़ावा देने वाली घोर आपत्तिजनक हरकत है। इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही की जानी चाहिए।
(5) अगले दिन प्रशासन ने दो आलीशान मकानों का गिरा दिया। जिसके बारे में कहा गया कि वह अतिक्रमण है। हालांकि अब सर्वोच्च न्यायालय भी आरोप के बाद मकान तोडऩे की प्रक्रिया पर आपत्ति दर्ज करवाते हुए बुलडोजर संस्कृति के खिलाफ निर्णय दे चुका है। लेकिन इस निर्णय के पूर्व भी यह निर्देश हैं कि , मानसून के मौसम में किसी का मकान नहीं तोड़ा जा सकता है। इसलिए जुलाई से सितंबर तक अतिक्रमण हटाना प्रतिबंधित है। नियमानुसार यदि मकान निजी भूमि पर बिना अनुमति या नक्शे के अनुसार नहीं बना हो तो उसे तोडऩे का नहीं, बल्कि उस पर जुर्माना लगाने के प्रावधान है।ऐसे अतिक्रमण की भूमि पर बने महंगे भवनों पर बुलडोजर चलाने की बजाय उन्हें राजसात करने का प्रावधान है, ताकि सरकार या तो उसे नीलाम कर सके या उसे शासकीय उपयोग में लाया जा सके। अब प्रश्र यह है कि इन प्रावधानों के बाद भी यदि उन मकानों को तोड़ा गया है तो यह प्रशासन की मंशा को जाहिर करता है कि वह सिर्फ आतंक स्थापित कर गैर कानूनी काम कर कर रहा था। अब मकान गिराने की प्रक्रिया के संबंध में , मकान को गिराते समय परिजनों को चार पहिया वाहनों और दूसरे सामानों को भी बाहर नहीं निकालने दिया गया। उन्हें भी तोड़ दिया गया। वह तो अतिक्रमण का हिस्सा नहीं था।मकान पर बुलडोजर चलाने से पहले किसी प्रकार की सूचना और मकानों को खाली करने का समय भी नहीं दिया गया। प्रशासन पूरी तरह से अपनी संविधानिक जिम्मेदारी को दरकिनार कर साम्प्रदायिक मानसाकिता के अनुसार काम कर रहा था। मौहल्ले से मिली जानकारी के अनुसार पुलिसकर्मी, प्रशसनिक और मकान तोडऩे गया हमला मुस्लिम समुदाय के प्रति घृणा से भरा हुआ था। मुस्लिम समुदाय के नागरिकों की दाढिय़ा खींच रहा था। उनकी टोपियां उछाल रहा था। उन्हें धर्म सूचक गालियां दे रहा था। यह बहुत चिंताजनक बात है कि यदि प्रशासन संविधानिक जिम्मेदारी भूल कर साम्प्रदयिक द्वेष भावना से कार्य करेगा तो देश में कानून और संविधान का राज नहीं रहेगा। यह देश की एकता और साम्प्रदायिक सदभाव के लिए भी घातक होगा।
प्रशासन का यह तर्क किसी के गले नहीं उतरता है कि अतिक्रमण हटाना जरूरी था। क्योंकि दो प्रश्रों के उत्तर जांच दल को जिलाधीश और पुलिस अधीक्षक भी नहीं दे पाए। यह मकान कोई कुकरमुत्ता नहीं था जो एक ही रात में उग आया हो। उसके निर्माण में सात साल लगे हैं। इतने दिनों से प्रशासन मूकदर्शक क्यों बना रहा? उसने निर्माण को रोकने की कार्यवाही क्यों नहीं की ? प्रदेश में बीस साल से भाजपा की सरकार है। छतरपुर में नगरपालिका भी भाजपा की है। नगरपालिका अध्यक्ष और सीएमओ ने इस अवैध निर्माण को क्यों निर्मित होने दिया? क्या इनकी भूमिका की भी जांच नहीं होनी चाहिए? जांच दल ने जब यह बात जिलाधीश के समक्ष उठाई तो उन्होने भी इसे नहीं नकारा, किंतु कोई उत्तर नहीं दिया, जांच दल को पूरी बस्ती में एक भी पुरुष नहीं मिला। सब आतंक और भय के कारण गायब थे। महिलाएं भी खुल कर बात करने के लिए तैयार नहीं थी। स्थिति यह है कि 21 अगस्त के बाद मस्जिदों में नमाज या अजान भी नहीं हो रही है, क्योकि डर के मारे औलिया और मौलवी शहर छोड़ गए हैं।
पुलिस ने 46 नामजद लोगों के साथ 100-150 अज्ञात के नाम पर रिपोर्ट दर्ज की है। यह अज्ञात पुलिस की लूट का जरिया बन गया है, किसी भी मुस्लिम पुरुष से कह दिया जाता है कि आपका भी नाम है और फिर उसके नाम पर वसूली हो रही है।जांच दल ने जब यह बात जिलाधीश और पुलिस अधीक्षक के सामने रखी तो उन्होने भी इसका खंडन नहीं किया, लेकिन कोई साकारत्मक उत्तर नहीं दिया। दिग्विजय सिंह ने कहा प्रशासन की पूरी कोशिश अपने अपराध पर पर्दा डालने की है। जांच दल ने 4 सितंबर को जेल जाकर इस मामले में बंद लोगों से मिलने की कोशिश की। जेलर ने बताया कि 40 लोग बंद हैं। अभी मुलाकात का समय खतम हो गया है, यदि आप सुबह दस बजे आएं तो मुलाकात हो सकती है। जांच दल जक 5 सिंतबर को निर्धारित समय प पहुंचा तो जेलर ने जानकारी दी कि हाजी शहजाद अली को भोपाल, 15 लोगों को सतना, 15 लोगों को सागर और 9 लोगों को ग्वालियर जेल में ट्रांसफर कर दिया गया है। अब जेल में कोई नहीं है। प्रश्र यह है कि यदि उन्हें पहले से ही ट्रांसफर करने की योजना थी तो फिर जांच दल को अगले दिन बुलाने की क्या आवश्यकता थी? या फिर उन्हें इसलिए अचानक ट्रांसफर किया गया कि जांच दल से बात न हो सके? प्रशासन पूरी तरह से राजनीतिक दबाव में सत्ताधारी पार्टी के दबाव में काम कर रहा है। जांच दल ने जिलाधीश और पुलिस अधीक्षक को सुझाव दिया कि भयमुक्त वातावरण बनाने और फिर से विश्वास कायम करने के लिए उन्हें प्रभावित क्षेत्र को दौरा कर जनता से संवाद करना चाहिए। दोनो ने इस पर सहमति जताने के बाद भी प्रभावित क्षेत्र का दौरा करने का आश्वासन नहीं दिया है।
दिग्विजय सिंह ने मांग करते हुए कहा पुलिस जिन लोगों पर मुकदमें दर्ज कर उन्हें जेल पहुंचा रही है, उन पर गैर जमानती और कठोर सजा वाली धाराएं लगाई जा रही हैं। हमारी मांग है कि यदि आरोपियों का पुराना अपराधिक रिकार्ड नहीं है तो इस घटना के आधार पर उन पर इस तरह की धाराओं को वापस लिया जाए। अज्ञात के नाम पर होने वाली वसूली को रोका जाए। भय का वातावरण खतम किया जाए। औलिया और मौलवियों को वापस बुलाया जाए ताकि मस्जिदों में नमाज हो सके। पुलिस थाने पर हुई घटना की समग्रता से न्यायिक जांच की जाए, जिसमें पुलिस की भूमिका भी शामिल है। पुलिस के नेतृत्व में प्रदर्शनकारियों का मारते हुए जुलूस निकाल कर आपत्तिजनक नारे लगवाने वाले अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जाए। बुलडोजर संस्कृति को रोका जाए। छतरपुर की घटना में मकान तोडऩे वाले, और यदि मकान अवैध निर्माण है तो अनुमति देने या उसे अनदेखा करने वाले अधिकारियों और नगरपालिका अध्यक्षों की भी संदेह के घेर में लाकर जांच की जाए। छतरपुर सहित जहां जहां भी बुलडोजर चला है, वहां मुआवजा पीडि़तों को मुआवजा दिया जाए। प्रशासन द्वारा भाजपा के राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने वाली हरकतों पर रोक लगाई जाए।
आशा है आप उचित कार्यवाही करें ताकि संविधान और कानून की सर्वोव्चता की रक्षा की जा सके। दिग्विजय सिंह ने कहा हमने जांच रिपोर्ट के आधार पर तैयार ज्ञापन को महामहिम राज्यपाल को सौंपने के लिए लगातार चार सिंतबर से समय मांग रहे हैं। हमारे लिखित अनुरोधों के बाद भी महामहिम का समय न देना चिंतनीय है, क्योंकि वे संविधान के संरक्षक हैं, किसी राजनीतिक दल के कार्यकर्ता नहीं।