सतीश साहू, जगदलपुर। Jagdalpur News : बस्तर संभाग मुख्यालय जगदलपुर में 75 दिनों तक मनाए जाने वाले ऐतिहासिक विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा में शनिवार रात को एक महत्वपूर्ण अनोखी विधान मावली परघाव रस्म अदायगी हुई, परंपरा अनुसार इस रस्म में दंतेवाड़ा से मावली देवी की छत्र एवं डोली को जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर लाया जाता है, जिसका स्वागत बस्तर के राजपरिवार और राजनेता एवं बस्तरवासियों के द्वारा किया जाता है।
आपको बता दें कि धार्मिक सहिष्णुता और सभी धर्मों के प्रति समादर का भाव रखने वाली सदियों पुरानी रस्म का नाम मावली परघाव है। मावली देवी के स्वागत को मावली परघाव कहते हैं। शनिवार की रात जगदलपुर शहर में मावली देवी के स्वागत में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ा था, गीदम रोड स्थित जिया डेरा से नवमीं की शाम मांई की डोली निकलती है, और दंतेश्वरी मंदिर सिंहड्योढ़ी तक आती है, जगह-जगह श्रद्धालु लोग इसका स्वागत करते हैं। इस दौरान जमकर आतिशबाजी हुई और उत्साह का माहौल दिखा।
शनिवार रात दंतेवाड़ा से पहुंची मावली माता की डोली और छत्र का बस्तर के राजकुमार ने भारी आतिशबाजी और फूलों से भव्य स्वागत किया। नगर के पैलेस रोड स्थित कुटरू बाड़ा एवं दंतेश्वरी मंदिर परिसर में मनाए जाने वाली इस रस्म को देखने लाखों की संख्या में हर साल लोग पहुंचते हैं।
प्राचीन मान्यता के अनुसार लगभग 600 सालों से इस रस्म को धूमधाम से मनाया जाता है. प्राचीन काल में बस्तर के महाराजा रुद्र प्रताप सिंह डोली का भव्य स्वागत करते थे, यह परंपरा आज भी बस्तर में बखूबी निभाई जाती है और अब बस्तर के राजकुमार कमलचंद भंजदेव इस रस्म की अदायगी करते हैं।
ऐसे शुरू हुई मावली परघाव रस्म
मावली देवी का बस्तर दशहरा पर्व में यथोचित सम्मान और स्वागत करने के लिए मावली परघाव रस्म शुरू की गई। बस्तर के इतिहास के जानकारों के अनुसार नवरात्रि के नवमी के दिन दंतेवाड़ा से आई मावली देवी की डोली का स्वागत करने बस्तर राजपरिवार सदस्य, राजगुरु और पुजारी के अलावा स्थानीय जनप्रतिनिधि राजमहल से मंदिर के परिसर कुटरुबाड़ा तक आते हैं। उनकी अगवानी और पूजा-अर्चना के बाद देवी की डोली को बस्तर के राजकुमार कंधों पर उठाकर राजमहल स्थित देवी दंतेश्वरी के मंदिर में लाकर रखते हैं. जिसके बाद इसे दशहरा पर्व समापन होने तक मंदिर के अंदर रखा जाता है।
बस्तर दशहरा में आज रविवार को भीतर रेनी पूजा होगी। इस रस्म में शाम को शहर परिक्रमा के लिए निकलेगा विजय रथ। बस्तर दशहरा में इस तरह की 75 रस्में अदा की जाती हैं। जिसमें मावली परघाव के अलावा बेल पूजा, निशा जात्रा, कुटुंब जात्रा आदि शामिल हैं। दुमंजिला काष्ठ की रथ नगर की परिक्रमा करता है जो कि बस्तर दशहरा पर्व का आकर्षण केंद्र होता है।