गरियाबंद मंदिरों एवं घर-घर गोवर्धन पर्व धूमधाम के साथ मनाया गया। महिलाओं ने गाय के गोबर से गोवर्धन महाराज की आकृति बनाकर पूजा-अर्चना की और मनोकामना पूर्ण होने की प्रार्थना की।
आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में शनिवार को गोवर्धन पूजन का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। गोवंश को रंगों और मोर पंख से श्रृंगारित कर पूजन किया गया। महिलाओं ने अपने घरों के बाहर गाय के गोबर से भगवान गोवर्धन के चित्र बनाए।
ब्रजवासियों की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति से विशाल गोवर्धन पर्वत को छोटी अंगुली में उठाकर हजारों जीव-जतुंओं और इंसानी जिंदगियों को भगवान इंद्र के कोप से बचाया था.- छगन यादव
समाज सेवी छगन यादव ने कहा कि गोवर्धन की पूजा इसलिए की जाती है
देवराज इंद्र का घमंड तोड़ने के लिए श्रीकृष्ण ने इंद्र की पूजा करने की बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए ग्रामीणों को प्रेरित किया। जब इंद्र को इस बात का पता चला तो उन्होंने पूरे गोकुल गांव को नष्ट करने व कृष्ण को अपनी शक्तियों का परिचय देने के लिए भारी बारिश करा दी। गांव में हाहाकार मच गया था तब इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन अपनी ऊँगली अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए उठाया था, भगवान इंद्रदेव ने भारी वर्षा की, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने अपने भक्तों की गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाकर भक्तों को बचाया, आज बहुत ही शुभ दिन है और भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाया था, यह पर्व दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है। 56 भोग से हम लोग पूजा करते हैं। भगवान पूरे ब्रह्मांड पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें।
पारंपरिक परिधानों में सज-धजकर छोटे-छोटे समूह में पूरे विधि-विधान के साथ महिलाओं ने गोवर्धन की सामूहिक रूप से पूजा-अर्चना कर परिवार में खुशहाली की कामनाएं कीं। इस दौरान लोगों ने सामूहिक रूप से गोवर्धन की परिक्रमा की।
दादा दादी के किस्सो से सुनते आए है और आज तक ये परंपरा चलती आ रही है – प्रहलाद यादव
प्रहलाद यादव (गुंचु) ने बताया कि यह पूजन द्वापर युग की घटना से जुड़ा है। जब बृजवासी कृष्ण की पूजा करते थे, तो इंद्र ने कोप किया कि ये बृजवासी कृष्ण की पूजा क्यों करते हैं, मेरी क्यों नहीं करते। जिसके बाद इंद्र ने पूरे बृज में तूफान और बरसात कर दी। जिससे पूरे बृज में पानी ही पानी हो गया और बृजवासी और ब्रजवासियों का पशुधन डूबने लगा
तब ब्रजवासी कृष्ण के पास गए तो कृष्ण ने सभी को गोवर्धन पर्वत के पास ले जाकर अपनी तर्जनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाया और उसके नीचे सभी ब्रजवासियों को ले जाकर बचाया। जिसके बाद से ही सभी बृजवासी गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे और उसके बाद सभी लोग प्रतीक के रूप में गोबर का गोवर्धन बनाकर उसकी विधि-विधान से पूजा करते हैं।
शनिवार को गरियाबंद के मंदिरों एवं घर-घर में गाय के गोबर से भगवान गोवर्धन की आकृति बनाकर गोवर्धन पूजा का आयोजन विधि-विधान पूर्वक किया गया। दीपावली के बाद अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है, लेकिन इस बार दीपावली के अगले दिन अमावस होने के चलते गोवर्धन पूजा नहीं हो सकी और आज शनिवार को गोवर्धन पूजा का आयोजन हुआ है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। इस त्योहार का भारतीय लोक जीवन में बहुत महत्व है, इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा संबंध दिखाई देता है। इस पर्व की अपनी मान्यता और लोककथा है। गोवर्धन पूजा में गौधन अर्थात गायों की पूजा की जाती है।