सूर्य षष्ठी व्रत जिसे आम भाषा में छठ पर्व के नाम से जाना जाता है. आस्था और सूर्य उपासना के लिए प्रसिद्ध इस महापर्व की शुरुआत 5 नवंबर से शुरु हो गई है. चार दिन तक मनाए जाने वाले छठ पर्व की शुरुआत कार्तिक शुक्ल मास की चतुर्थी तिथि और समाप्ति सप्तमी तिथि पर होती है
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छठ पर्व भगवान सूर्य की उपासना और आराधना का प्रतीक है. श्रद्धालु सूर्यदेव से सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना करते हैं. यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाता है, बल्कि सूर्य के महत्व को भी सम्मानित करता है. सूर्यदेव के प्रति आस्था रखने वाले लोग इस दिन उपवास रखते हैं और कठिन साधना के साथ सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं, जिससे उन्हें जीवन के हर क्षेत्र में समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है.
छठ के तीसरे दिन ढलते सूर्य को अर्घ्य देने का समय
आज सूर्यास्त का समय 07 नवंबर 2024 दिन गुरुवार को शाम 5 बजकर 31 मिनट पर है। आज इस समय पर छठ पर्व के तीसरे दिन सूर्य भगवान को पहला अर्घ्य दिया जाएगा। इसे अस्ताचलगामी सूर्य अर्घ्य कहा जाता है, जिसका अर्थ है ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य देना।
छठ पर्व में अर्घ्य का विशेष महत्व है. सूर्य का संबंध स्वास्थ्य, पिता और आत्मा से होता है. ऐसी मान्यता हैं कि सूर्य की आराधना करने और अर्घ्य देने से बड़े से बड़े कष्ट भी दूर हो जाते है, जीवन में संपन्नता आती है और सेहत से जुड़ी जो भी समस्या होती है, वह जल्द से जल्द दूर हो जाती है. डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने से सूर्य के साथ उनकी पत्नी प्रत्यूषा का भी आशीर्वाद मिलता है क्योंकि डूबते हुए सूर्य की किरणों में उनकी पत्नी प्रत्युषा होती है.
उषा के आशीर्वाद से होती है, मनोकामना पूरी
कार्तिक शुक्ल मास के सप्तमी तिथि को उदित सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा निभाई जाती है. प्रातःकाल में सूर्य पत्नी उषा के साथ रहते हैं, जिन्हें “भोर की देवी” के नाम से भी जाना जाता है.