Marijuana : आज के भागदौड़ भरे जीवन में टेंशन आम समस्या बन गया है। इसके समाधान के लिए कई लोग गलत दिशा में कदम उठाते हुए गांजा या भांग का सहारा लेते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या वाकई गांजा तनाव को कम करता है या यह सिर्फ एक भ्रम है?
गांजा (मारिजुआना) का इस्तेमाल कुछ लोग तनाव या टेंशन को कम करने के लिए करते हैं क्योंकि इसमें टीएचसी (Tetrahydrocannabinol) नामक यौगिक होता है, जो मस्तिष्क में न्यूरोकेमिकल्स को प्रभावित करता है और अस्थायी रूप से रिलैक्स महसूस करा सकता है। लेकिन यह राहत अस्थायी होती है और इसके कई नकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं।
गांजे का असर शरीर के किस हिस्से पर कितनी देर रहता है
आमतौर पर THC का असर बालों में 90 दिनों तक, यूरीन में 30 दिनों तक लार में 24 घंटे तक और ब्लड में 12 घंटे तक होता है. हालांकि, यह इस बात पर निर्भर करता है कि गांजा (Marijuana) कितनी बार फूंका गया है.
गांजे को शरीर कैसे प्रॉसेस करता है
गांजे के केमिकल THC शरीर के कई टिश्यू और ऑर्गन्स में पहुंचता है. इनमें ब्रेन, हार्ट, लिवर और फैट शामिल हैं. लिवर 11-हाइड्रॉक्सी-THC और कार्बोक्सी-THC (मेटाबोलाइट्स) में मेटाबॉलिज्म करता है. जिसका करीब 85% हिस्सा अपशिष्ट पदार्थों के जरिए बाहर निकल जाता है और बाकी शरीर में जमा हो जाता है. समय के साथ शरीर के टिश्यू में जमा THC वापस ब्लड सर्कुलेशन में छोड़ दिया जाता है, जहां इसे लिवल मेटाबॉलिस करता है.
गांजा शरीर पर कैसे असर करता है
गांजे में THC और CBD केमिकल्स पाए जाते हैं. दोनों का अलग-अलग काम है. THC नशा बढ़ाता है और CBD, टीएचसी के प्रभाव को कम करता है. सीबीडी घबराहट को कम करता है लेकिन उस समय इंसान को अंदर तक हिसा देता है. जब गांजे में टीएमसी की मात्रा सीबीडी से ज्यादा हो और उसी वक्त कोई गांजा फूंक लेता है तो टीएचसी खून के साथ दिमाग तक पहुंच जाता है और गड़बड़ियां करने लगता है. इससे दिमाग का न्यूरॉन्स कंट्रोल से बाहर हो जाता है.
गांजा फूंकने के नुकसान
1. नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज, इंजीनियरिंग एंड मेडिसिन रिपोर्ट के अनुसार, गांजा फूंकने से बाइपोलर डिसऑर्डर हो सकते हा, जो डिप्रेशन और मानसिक समस्याओं को बढ़ा सकता है.
2. गांजा पीने वालों में कैंसर का खतरा ज्यादा होता है. कुछ शोध बताया गया है कि इससे टेस्टिकुलर कैंसर का खतरा बढ़ता है. हालांकि, इस पर ज्यादा शोध की जरूरत है.
3. नियमित तौर पर गांजा पीने से पुरानी खांसी का रिस्क बढ़ सकता है. इससे फेफड़े की कार्यक्षमता प्रभावित होती है और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज या अस्थमा का खतरा रहता है.