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Special Story Kumbh Mela : आस्था, परंपरा और संस्कृति का प्रतीक कुंभ मेला, क्या हैं इसकी पौराणिक मान्यता

Aarti Beniya
Last updated: 2024/12/15 at 1:02 PM
Aarti Beniya
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2 Min Read
Special Story Kumbh Mela : आस्था, परंपरा और संस्कृति का प्रतीक कुंभ मेला, क्या हैं इसकी पौराणिक मान्यता
Special Story Kumbh Mela : आस्था, परंपरा और संस्कृति का प्रतीक कुंभ मेला, क्या हैं इसकी पौराणिक मान्यता
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Special Story Kumbh Mela : कुंभ मेला हिंदू धर्म का एक पवित्र और ऐतिहासिक त्योहार है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं। यह दिव्य मेला हर 12 साल में चार प्रमुख स्थानों—हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है। कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर और आस्था का महापर्व है।

पौराणिक इतिहास
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश को लेकर देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हुआ। अमृत की कुछ बूंदें हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में गिरीं, जिससे ये स्थान पवित्र बन गए। तभी से इन जगहों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।

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ज्योतिषीय महत्व:
कुंभ मेले का समय और स्थान ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर तय होता है:
– हरिद्वार: जब बृहस्पति कुंभ राशि और सूर्य मेष राशि में होते हैं।
– प्रयागराज: जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति मकर राशि में होते हैं।
– नासिक: जब बृहस्पति सिंह राशि में प्रवेश करता है।
– उज्जैन: जब बृहस्पति सिंह राशि और सूर्य मेष राशि में होते हैं।

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इन खगोलीय घटनाओं को पौराणिक कथाओं में अमृत की सुरक्षा से जोड़ा गया है।

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कुंभ मेले का सबसे महत्वपूर्ण भाग गंगा स्नान है। हरिद्वार और प्रयागराज में गंगा, नासिक में गोदावरी, और उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर स्नान को जीवन के पापों से मुक्ति और मोक्ष का मार्ग माना गया है।

कुंभ मेले में केवल भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी करोड़ों श्रद्धालु आते हैं। यह आयोजन भक्ति, परंपरा और मानवता का संगम प्रस्तुत करता है।

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