बिलासपुर। एंटी करप्शन ब्यूरो में 6 साल पहले दर्ज एक मामले में परिवाद दायर किया गया है। यह परिवाद पवन अग्रवाल ने दायर किया है, जिसमें उन्होंने तथ्य प्रस्तुत किया है कि एसीबी ने साल 2014 में उनके भाई आलोक अग्रवाल के खिलाफ जांच संस्थित किया था, तब वे जल संसाधन विभाग में बतौर ईई पदस्थ थे। उनके साथ एसीबी ने पवन अग्रवाल के ठिकानों पर भी दबिश दी थी और करोड़ों की संपत्ति को जप्त कर लिया था। पवन अग्रवाल के मुताबिक पूरी कार्रवाई तात्कालीन एसीबी चीफ एडीजी मुकेश गुप्ता और एसपी रजनेश सिंह के निर्देश पर हुई थी, जबकि सर्च वारंट में एफआईआर नंबर दर्ज नहीं था। वहीं जप्ती के संदर्भ में कोई भी पत्रक न्यायालय में पेश नहीं किया गया है।
कथित तौर पर कूटरचित FIR तैयार करने और असत्य तथा अपूर्ण तथ्यों के साथ सर्च वारंट के आधार पर तलाशी लिए जाने के मसले पर पेश परिवाद पर CJM डमरुधर चौहान के आदेश पर धारा -120-B-IPC, 166-IPC, 167-IPC, 213-IPC, 218-IPC, 380-IPC, 382-IPC, 420-IPC, 467-IPC, 468-IPC, 471-IPC, 472-IPC के तहत अपराध पंजीबद्ध कर विवेचना के निर्देश थाना सिविल साईंस थाने को दिए हैं।
कल देर शाम सिविल लाईंस थाने में अज्ञात के विरुद्ध क्राईम नंबर 0791/2020 कायम कर विवेचना शुरु कर दी गई है।
जिस परिवाद पर जारी निर्देश पर यह मामला पंजीबद्ध किया गया है उसमें परिवादी पवन अग्रवाल हैं, जो कि जल संसाधन विभाग में पदस्थ रहे कार्यपालन अभियंता आलोक अग्रवाल के भाई हैं।
परिवाद में यह आरोप लगाया गया है कि,30 दिसंबर 2014 को ACB के अधिकारी विजय कटरे और आलोक जोशी पहुँचे और सर्च वारंट दिखाया, सर्च वारंट में FIR नंबर अंकित नही था,अधिकारीयों ने सर्च के दौरान आवेदन की निजी संपत्ति, स्व अर्जित आय और स्त्रीधन के आभूषण को जप्त किया, और इसके लिए तत्कालीन ACB के मुखिया मुकेश गुप्ता और कप्तान रजनीश सिंह के मौखिक निर्देश का हवाला दिया। इस जप्ती का कोई पत्रक न्यायालय में पेश भी नही किया गया। वहीं यह सूचना भी प्राप्त हुई कि,जिस अपराध क्रमांक 56/14 के तहत सर्च किया गया, वैसी कोई FIR थाना ऐसीबी/ईओडब्लू में दर्ज नही है।
सीजेएम बिलासपुर ने इस परिवाद को पंजीबद्ध कर आदेश देते हुए लिखा है – “परिवादी के द्वारा पुलिस अधीक्षक राज्य आर्थिक अन्वेषण ब्यूरो से जाँच कराए जाने का निवेदन किया गया है,किंतु प्रस्तुत परिवाद में आर्थिक अपराध के अपराध किए जाने के संबंध में परिवाद में उल्लेख नही किया गया है, और ना ही ऐसा कोई दस्तावेज पेश किया गया है,ऐसी स्थिति में प्रस्तुत परिवाद की जाँच पुलिस अधीक्षक राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो रायपुर से कराये जाने की आवश्यकता दर्शित नही होती, बल्कि इस न्यायालय के सुनवाई क्षेत्राधिकार में स्थित थाना सिविल लाईंस से कराया जाना उचित प्रतीत होता है”
परिवाद पर अदालत के निर्देश पर थाना सिविल लाईंस ने अज्ञात के विरुद्ध धारा -120-B-IPC, 166-IPC, 167-IPC, 213-IPC, 218-IPC, 380-IPC, 382-IPC, 420-IPC, 467-IPC, 468-IPC, 471-IPC, 472-IPC के तहत अपराध पंजीबद्ध कर लिया है। परिवाद पर पंजीबद्ध किए गए अपराध में आरोपी का नाम अज्ञात क्यों, यह पूछे जाने पर विवेचना से जूड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा – “किसने कूटरचित दस्तावेज बनाए या नही बनाए ? कौन दोषी है कौन दोषी नही है ? यह विवेचना के बाद स्पष्ट होगा..जाँच में जैसे जैसे तथ्य आते जाएँगे कार्यवाही की जाती रहेगी”