Maha Kumbh 2024: प्रयागराज में महाकुंभ का भव्य आयोजन शुरू हो चुका है। 144 साल बाद आयोजित हो रहे इस पूर्ण महाकुंभ में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु संगम तट पर पहुंच रहे हैं। साधु-संतों और नागा साधुओं की टोलियां अपने अखाड़ों के साथ शाही अंदाज में अमृत स्नान कर रही हैं।
महाकुंभ में महिला नागा साधुओं की उपस्थिति ने विशेष आकर्षण पैदा किया है। सोशल मीडिया पर सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि अमृत स्नान के दौरान महिला साध्वियां अपने रिवाज और दिनचर्या का पालन कैसे करती हैं।
महिला नागा साधु महावारी के समय विशेष नियमों का पालन करती हैं। इस दौरान वे स्नान और पूजा के लिए अलग स्थान पर जाती हैं और अखाड़ों की परंपराओं के अनुसार अपनी दिनचर्या निभाती हैं। उनका समर्पण और अनुशासन कुंभ के श्रद्धालुओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन रहा है। लेकिन लोगों के मन में यह सवाल अक्सर आता है कि महाकुंभ के दौरान अगर महिला साधु को मासिक धर्म हो जाए तो वो क्या करती हैं? इस सवाल का जवाब आज हम आपको बताएंगे.
महिला नागा साधु केवल उस दिन गंगा स्नान करती हैं जब उन्हें मासिक धर्म नहीं होता. अगर कुंभ के दौरान उन्हें पीरियड्स आ जाएं तो वो गंगा जल के छींटे अपने ऊपर छिड़क लेती हैं. इससे मान लिया जाता है कि महिला नागा साधु ने गंगा स्नान कर लिया है.
नागा साधुओं के बाद स्नान
इनकी खास बात होती है कि ये महाकुंभ में पुरुष नागा साधु के स्नान करने के बाद वह नदी में स्नान करने के लिए जाती हैं. अखाड़े की महिला नागा साध्वियों को माई, अवधूतानी या नागिन कहा जाता है. नागा साधु बनने से पहले इन्हें भी जीवित रहते ही अपना पिंडदान करना होता है और मुंडन भी कराना पड़ता है. नागिन साधु बनने के लिए इन्हें भी 10 से 15 साल तक तक कठिन ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है.
केसरिया वस्त्र पहनती हैं
महिला नागा साधु, पुरुष नागा साधुओं से अलग होती हैं. वे दिगंबर नहीं रहतीं. वे सभी केसरिया रंग के वस्त्र धारण करती हैं. लेकिन वह वस्त्र सिला हुआ नहीं होता. इसलिए उन्हें पीरियड्स के दौरान कोई समस्या नहीं होती. कुंभ मेले में नागा साध्वियों भाग लेती हैं.
कैसे बनती हैं महिला नागा साधू
नागा साधु या संन्यासनी बनने के लिए 10 से 15 साल तक कठिन ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है. नागा साधु बनने लिए गुरु को विश्वास दिलाना पड़ता है कि वह महिला नागा साधु बनने के लिए योग्य हैं और खुद को ईश्वर के प्रति समर्पित कर चुकी हैं. इसके बाद गुरु ही नागा साधु बनने की स्वीकृति देते हैं. नागा साधु बनने से पहले महिला की बीते जीवन को देखकर यह पता किया जाता है कि वह ईश्वर के प्रति समर्पित है या नहीं और वह नागा साधु बनने के बाद कठिन साधना कर सकती है या नहीं. नागा साधु बनने से पहले महिला को जीवित रहते ही अपना पिंडदान करना होता है और मुंडन भी कराना पड़ता है.
क्या खाती हैं महिला नागा साधु
मुंडन कराने के बाद महिला को नदी में स्नान कराया जाता है और फिर महिला नागा साधु पूरा दिन भगवान का जप करती हैं. पुरुषों की तरह ही महिला नागा साधु भी शिवजी की पूजा करती हैं. सुबह ब्रह्म मुहुर्त में उठकर शिवजी का जाप करती हैं और शाम को दत्तात्रेय भगवान की आराधना करती हैं. दोपहर में भोजन के बाद फिर वह शिवजी का जाप करती हैं. नागा साधु खाने में कंदमूल फल, जड़ी-बूटी, फल और कई तरह की पत्तियां खाते हैं. महिला नागा साधु के रहने के लिए अलग-अलग अखाड़ों की व्यवस्था की जाती है.