धरसींवा। Raipur News : राजधानी रायपुर के धरसींवा ब्लाक में इन दिनों भीषण गर्मी की तपिश अब आम जनजीवन के साथ-साथ औद्योगिक गतिविधियों पर भी कहर बरपा रही है। उद्योग नगर सिलतरा से लेकर धरसींवा क्षेत्र तक जल संकट गहराता जा रहा है। जीवनदायिनी खारुन नदी, जो कभी इस क्षेत्र की प्यास बुझाती थी, अब सूखने के कगार पर है। वहीं, सरकार की महत्वाकांक्षी जल जीवन मिशन योजना भी इस संकट के सामने दम तोड़ती नजर आ रही है, जिससे लोगों की उम्मीदें धराशायी हो गई हैं।बात करे ग्राम मांढर की तो जल संकट भयावह की स्थिति निर्मित हो गई है।
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राजधानी रायपुर से लगे इलाका की अगर बात करे तो धरसींवा क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में भी हालात बदतर हैं। खारुन नदी के सूखने से सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध नहीं है, जिससे किसानों की फसलें मुरझाने लगी हैं। पीने के पानी के लिए भी लोगों को दूर-दूर तक भटकना पड़ रहा है। महिलाएं और बच्चे तपती धूप में कई किलोमीटर पैदल चलकर पानी लाने को मजबूर हैं। यह स्थिति मानवीय त्रासदी से कम नहीं है। वही सरकार ने हर घर तक नल से जल पहुंचाने के उद्देश्य से जल जीवन मिशन की शुरुआत की थी। लेकिन सिलतरा और धरसींवा क्षेत्र में इस योजना का क्रियान्वयन सवालों के घेरे में है। जमीनी स्तर पर पाइपलाइन बिछाने का काम या तो अधूरा है या फिर गुणवत्ताहीन है। कई गांवों में तो अभी तक नल कनेक्शन ही नहीं पहुंच पाया है। ऐसे में, जब नदी ही सूख गई है, तो नल में पानी आने की उम्मीद भी धूमिल हो गई है। यह विडंबना ही है कि एक तरफ सरकार करोड़ों रुपये जल जीवन मिशन पर खर्च कर रही है, वहीं दूसरी तरफ धरातल पर लोगों को बूंद-बूंद पानी के लिए तरसना पड़ रहा है। यह स्पष्ट रूप से योजना के क्रियान्वयन में लापरवाही और भ्रष्टाचार को दर्शाता है।
दावों और वादों के बीच जल संकट के जिम्मेदार कौन?
इस गंभीर जल संकट के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या सरकार और स्थानीय प्रशासन ने गर्मी के मौसम में संभावित जल संकट को लेकर कोई ठोस योजना बनाई थी? खारुन नदी के सूखने के कारणों की पड़ताल क्यों नहीं की गई? जल जीवन मिशन की विफलता के लिए किसे जवाबदेह ठहराया जाएगा? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब आम जनता जानना चाहती है। अब समय आ गया है कि सरकार और प्रशासन गहरी नींद से जागें और तत्काल प्रभावी कदम उठाएं। खारुन नदी में पानी के स्तर को बढ़ाने के लिए दीर्घकालिक और अल्पकालिक योजनाओं पर काम करना होगा। उद्योगों और आम नागरिकों के लिए पानी के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करनी होगी। जल जीवन मिशन के क्रियान्वयन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी, ताकि यह योजना वास्तव में लोगों के जीवन में बदलाव ला सके। यह सिर्फ पानी का संकट नहीं है, यह जीवन का संकट है। यदि समय रहते ध्यान नहीं दिया गया, तो सिलतरा और धरसींवा क्षेत्र एक बड़े मानवीय और आर्थिक संकट की ओर बढ़ सकता है। जनसरोकार की यही मांग है कि सरकार इस गंभीर स्थिति को समझे और त्वरित कार्रवाई करे, ताकि लोगों को इस भीषण गर्मी में पानी के लिए न तरसना पड़े।
जल जीवन मिशन की टंकी तो बनी, पर नल अब भी प्यासाः सरकार की खानापूर्ति कब तक?
केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना, जल जीवन मिशन, जिसका उद्देश्य देश के हर घर तक नल से जल पहुंचाना है, कई क्षेत्रों में कागजी शेर साबित हो रही है। ऐसा ही हाल देखने को मिल रहा है उन इलाकों में जहां मिशन के तहत पानी की टंकियां तो बनकर तैयार हो गईं, लेकिन लोगों के घरों तक नल से पानी की एक बूंद भी नहीं पहुंची। यह स्थिति न केवल योजना के क्रियान्वयन पर सवाल उठाती है, बल्कि सरकार की खानापूर्ति वाली कार्यशैली को भी उजागर करती है।ग्रामीण क्षेत्रों में जल संकट एक गंभीर समस्या है, और जल जीवन मिशन इसी समस्या के समाधान के लिए शुरू किया गया था। लोगों को उम्मीद थी कि अब उन्हें पीने और दैनिक उपयोग के लिए पानी लाने के लिए दूर-दूर तक भटकना नहीं पड़ेगा। लेकिन, कई गांवों में स्थिति जस की तस बनी हुई है। नई पानी की टंकी गांव के बाहर शान से खड़ी है, मानो विकास का प्रतीक हो, लेकिन इस टंकी से जुड़े नल आज भी सूखे पड़े हैं।