CRIME NEWS : उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, बेलघाट की गलियों से एक ऐसी खबर उछली है, जिसे सुनकर आपका दिमाग या तो हंसेगा या सिर पकड़ लेगा। 2 मई 2025 को, एक सामुदायिक भोज में “मोटा” शब्द ने ऐसा तूफान मचाया कि मामला सीधे गोलीबारी तक पहुंच गया। जी हां, यह कोई बॉलीवुड स्क्रिप्ट नहीं, बल्कि गोरखपुर का असली “बदले की आग” ड्रामा है!
मामला क्या है जानिए
बात शुरू हुई तरकुलहा देवी मंदिर के पास एक भोज से, जहां अनिल चौहान और शुभम यादव ने अपने दोस्त अर्जुन चौहान को “मोटा” कहकर चिढ़ाया। अब भई, मजाक तो हम सब करते हैं, लेकिन अर्जुन ने इसे दिल पर ले लिया—इतना कि उसका दिल नहीं, बल्कि बंदूक बोलने लगी! अर्जुन, अपने दोस्त आसिफ खान के साथ, 20 किलोमीटर तक कार के पीछे दौड़ा, मानो कोई मॉर्निंग जॉगिंग का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने जा रहा हो। फिर, जगदीशपुर-कालेसर बाईपास पर तेनुआ टोल प्लाजा के पास, अनिल और शुभम को कार से खींचकर गोली मार दी। शुभम को गंभीर चोटें आईं, और अनिल का हाथ अब शायद “मोटा मजाक” की कीमत चुका रहा है।
जब यह तमाशा चल रहा था, कुछ राहगीरों ने “पब्लिक सर्विस” का जज्बा दिखाया और घायलों को जिला अस्पताल पहुंचाया। वहां से दोनों को गोरखपुर मेडिकल कॉलेज भेजा गया, जहां उनकी हालत अब स्थिर है। लगता है, अस्पताल वाले भी सोच रहे होंगे, “भइया, मोटा बोलने की सजा तो ठीक, लेकिन इतनी भी नहीं!”
शुभम के पिता की शिकायत पर पुलिस ने 9 मई 2025 को अर्जुन को धर दबोचा। अर्जुन ने बिंदास कबूल किया, “हां, मैंने गोली चलाई, क्योंकि मोटा बोलना मुझे बर्दाश्त नहीं!” आसिफ भी पकड़ा गया, और अब पुलिस “मोटा मसाला” की जांच में जुटी है। वैसे, पुलिस को शायद अब “मजाक प्रिवेंशन ट्रेनिंग” शुरू कर देनी चाहिए।
यह खबर जंगल की आग की तरह फैली। कोई इसे “सनसनीखेज” बता रहा है, तो कोई कह रहा है, “भइया, मोटा बोलने से पहले अब BMI चेक कर लेंगे!” कुछ यूजर्स ने तो सुझाव दिया कि गोरखपुर में “संवेदनशील मजाक” पर वर्कशॉप होनी चाहिए।
हंसी-मजाक में लोग यह भी पूछ रहे हैं कि अगला विवाद “लंबा” या “पतला” कहने पर होगा क्या?
नैतिक शिक्षा (क्योंकि हम भारतीय हैं)
यह घटना बताती है कि मजाक करना भी एक कला है, और हर कोई इस कला में माहिर नहीं। गोरखपुर का यह “मोटा गोलीकांड” हमें सिखाता है कि जीभ को काबू में रखें, वरना 20 किमी का पीछा और गोलीबारी का रिस्क तो बनता है! पुलिस ने तो आरोपियों को पकड़ लिया, लेकिन समाज को अब “मजाक मैनेजमेंट” सीखना होगा, वरना अगली बार कोई “चश्मिश” या “टकला” कहने पर बंदूक उठा लेगा।
इस कांड ने ये साबित कर दिया कि छोटा शहर, बड़ा ड्रामा! तो अगली बार भोज में जाओ, तो खाना खाओ, गाना सुनो, और “मोटा” जैसे शब्दों से बचो। क्योंकि, भइया, गोरखपुर में मजाक की कीमत गोली से चुकानी पड़ सकती है!