कहते हैं जो काम किसी तरह की अपील से नहीं होता है उसको किसी चीज का डर अपने आप करवा देता है। ये कहावत मौजूदा समय में बिल्कुल सटीक दिखाई देती है। कोविड-19 के डर की बदौलत सिर्फ बुरा ही नहीं हुआ बल्कि काफी कुछ अच्छा भी हुआ है। कोविड-19 से पहले तक इनके बारे में सोचना भी गुनाह जैसा लगता था। कई बार सामाजिक तौर पर हम कई चीजों को करने से पीछे हट जाते थे कि लोग क्या कहेंगे। लेकिन अब ऐसा नहीं है। जानें क्या हुआ इस दौरान अच्छा।
कार्बन उत्सर्जन में गिरावट
कोविड-19 की वजह से वैश्विक तौर पर लगे लॉकडाउन का सबसे बड़ा फायदा कार्बन उत्सर्जन में गिरावट को लेकर हुआ है। विश्व की बड़ी संस्थाओं ने इसको लेकर अपनी रिपोर्ट में भी कहा है। नेचर कम्युनिकेशंस मैग्जीन की रिसर्च रिपोर्ट में कहा गया कि कोविड-19 के बाद लगे लॉकडाउन में अप्रैल तक कार्बन उत्सर्जन में करीब 17 फीसद तक की कमी आई थी। जून में ये कमी करीब 9 फीसद दर्ज की गई। इस बारे में कुछ दिन पहले सामने आई विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की रिपोर्ट काफी खास है। इसमें कहा गया है कि मौजूदा वर्ष में सालाना वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन 4.2 से 7.5 फीसदी के बीच रहा है। इसमें ये भी कहा गया है कि दैनिक स्तर पर इसमें ये कमी 17 फीसद तक रही है। ये तमाम आंकड़े इसलिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि हर साल वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने की बात कही जाती रही है। लेकिन इस संबंध में कुछ खास नहीं हो पाया था। कोविड-19 ने इसको भी आसान बना दिया।
प्रदूषण में गिरावट
कोविड-19 के फायदे में दूसरा सबसे बड़ा फायदा प्रदूषण में कमी रहा है। भारत की ही यदि बात करें तो कोविड-19 की वजह से पहली बार हुए लॉकडाउन के दौरान इसका असर भी दिखाई देने लगा था। इस दौरान दिल्ली मुंबई, अहमदाबाद और पुणे में वायु प्रदूषण 20-25 फीसद तक की गिरावट आई थी। सीपीसीबी के आंकड़े इसकी तस्दीक दे रहे हैं। इसके मुताबिक इन शहरों में वायु प्रदूषण के प्रमुख कारकों पीएम 10, पीएम 2.5 और एनओ के उत्सर्जन में 15-50 फीसद तक की कमी दर्ज की गई है। इस दौरान देश के करीब 104 शहरों में हवा की गुणवत्ता संतोषजनक स्तर पर रही है। हाल ही में नासा की एक रिपोर्ट में कहा गया लॉकडाउन के दौरान वैश्विक स्तर वायुमंडल में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड में 20-25 फीसद तक कमी आई है।
बेहद कम समय में टीका विकसित
विश्व में पहली बार चेचक का टीका वर्ष 1798 में विकसित किया गया था। इसके बाद 1979 में इसका वैश्विक स्तर पर प्रोडेक्शन शुरू हुआ था। हालांकि चेचक जैसी बीमारी का जिक्र इसके विकसित होने से 700 वर्ष पहले चीन के दस्तावेजों में भी मिलता है। बहरहाल, ये सब कहने का मकसद सिर्फ ये बताना है कि किसी बीमारी के बाद किसी वैक्सीन को विकसित करने में एक लंबा समय लगा। चाहे वो प्लेग हो या फिर बीसीजी के टीके की बात हो या दूसरी कोई और वैक्सीन हो। लेकिन पहली बार ऐसा देखा जा रहा है कि किसी बीमारी के सामने आने के महज एक वर्ष के अंदर कोई वैक्सीन विकसित की गई हो। इतने कम समय में अब से पहले कोई वैक्सीन विकसित नहीं की गई है। हालांकि इसकी एक बड़ी वजह ये रही है कि कोविड-19 की चपेट में दुनिया के सभी देश आ चुके हैं। इसकी वजह से पूरी दुनिया के वैज्ञानिक इस वैक्सीन को बनाने में एकजुटता दिखा रहे हैं। लेकिन ये भी कोविड-19 की ही वजह से हो पाया है।
मास्क लगाना बन गई आदत
कोविड-19 आने से पहले किसी ने नहीं सोचा था कि उन्हें घर से बाहर निकलते हुए मास्क लगाना पड़ेगा। लेकिन, इस महामारी ने अब इसे आम लोगों की आदत में शुमार करवा दिया है। पहले की बात करें तो जुकाम हो या खांसी, भीड़ में लोग घूमते और दूसरे को संक्रमित करते आम दिखाई दे जाते थे। लेकिन अब मास्क लगने की वजह से दूसरों के संक्रमित होने का खतरा काफी कम हो गया है। गौरतलब है कि दिसंबर 2019 के अंत में ये बीमारी चीन के वुहान शहर में शुरू हुई थी। इसके बाद भारत समेत दुनिया के कई दूसरे देशों में जनवरी के अंत तक इसके मामले सामने आ गए थे। मार्च के खत्म होते होते इसकी चपेट में समूचा विश्व आ चुका था। पृथ्वी पर केवल अंटार्कटिका ही एक ऐसी जगह थी जहां इसका कोई मामला नहीं आया।