राजनीतिक घमासान और निचले स्तर की बयानबाजी तेज
धरसींवा,मोहम्मद उस्मान सैफी। CG NEWS: छत्तीसगढ़ की राजधानी से सटा धरसींवा ब्लॉक के ग्राम पंचायत सम्मानपुर नकटी इस समय एक बड़े भू-विवाद के केंद्र में है। गांव की 56 एकड़ चारागाह भूमि पर करीब 85 परिवारों के दशकों पुराने कब्जे को लेकर राज्य सरकार और इन ग्रामीणों के बीच सीधी जंग छिड़ गई है। यह मामला अब सिर्फ एक जमीन का टुकड़ा नहीं, बल्कि पुश्तैनी दावों, राजनीतिक बयानबाजी और मानवीय त्रासदी का एक जटिल जाल बन गया है। जंहा गांव में 85 परिवार अपने बच्चों के साथ सुबह से शाम तक गांव के एक भवन पर धरना दे रहे हैं, जिससे राजनीतिक सरगर्मियां लगातार बढ़ रहा है।
अरबों की सरकारी जमीन पर ‘सत्ता का दावा’
राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन का कहना है कि यह 56 एकड़ भूमि सरकारी चारागाह के तौर पर दर्ज है, जिसका मतलब है कि यह राज्य की संपत्ति है। मौजूदा बाजार में इसकी कीमत अरबों रुपये आंकी जा रही है। सरकार ने इस बेशकीमती जमीन को छत्तीसगढ़ के अधिकारियों और विधायकों के लिए भविष्य के आवासीय भवनों के निर्माण हेतु आरक्षित कर दिया है। प्रशासन ने इस ‘अवैध कब्जे’ को हटाने के लिए इन 85 परिवारों को तीन बार नोटिस जारी किए हैं। सरकार का यह कदम साफ दिखाता है कि वह अपनी संपत्ति पर किसी भी तरह के अतिक्रमण को बर्दाश्त नहीं करेगी और उसे खाली कराने के लिए दृढ़ है।
ग्रामीणों का भावनात्मक दावा: ‘पूर्वजों की दी हुई जमीन, हमारा ठिकाना’
वहीं दूसरी ओर सम्मानपुर नकटी के यह 85 परिवार सरकार के फैसले का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। वे भावुक होकर कहते हैं कि यह जमीन उनके पूर्वजों ने सन 1940 में चारागाह के लिए ‘दान’ की थी, जिसे सिर्फ चारागाह के रूप में इस्तेमाल होना था पर अब परिवार बड़े होने के कारण
इस पर काबिज हैं। वे इसे आज भी अपनी पुश्तैनी भूमि मानते हैं और तर्क देते हैं कि गरीबी के कारण व अन्य विकल्प न होने के कारण वे इस पर मकान बनाकर रह रहे हैं। उनके लिए यह सिर्फ जमीन का टुकड़ा नहीं, बल्कि उनकी पहचान, आजीविका और कई पीढ़ियों का बसेरा है। बेघर होने का डर उन्हें सता रहा है, और वे इसे ‘सरकार द्वारा गरीबों पर अत्याचार’ मान रहे हैं।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप और ओछी मानसिकता का प्रदर्शन,,
इस संवेदनशील मुद्दे पर राजनीतिक दल भी कूद पड़े हैं, जिससे यह मामला और गरमा गया है। कुछ विपक्षी पार्टियां ग्रामीणों के समर्थन में आकर भाजपा सरकार पर निशाना साध रही हैं, इसे ‘जन विरोधी’ और ‘तानाशाही’ करार दे रही हैं। हालांकि इस पर कुछ भाजपा नेताओं ने भी इसका जवाब दिया है। उनका कहना है कि पिछली कांग्रेस सरकार ने भी 2022 में छेड़ी खेड़ी में 146 परिवारों को बेदखल किया था, लेकिन तब उन्हें कोई मुआवजा नहीं दिया गया था। यह आरोप-प्रत्यारोप साफ दिखाता है कि यह मुद्दा अब राजनीतिकरण का शिकार हो चुका है, जहाँ दोनों प्रमुख दल एक-दूसरे पर उंगली उठा रहे हैं।
ओछी मानसिकता का प्रदर्शन,,
इस बीच, एक चिंताजनक बात यह भी सामने आई है कि धरने पर बैठे कुछ ग्रामीणों ने एक निजी चैनल के माध्यम से स्थानीय विधायक पर आपत्तिजनक और अपशब्दों का प्रयोग करते हुए उन्हें बदनाम करने की कोशिश की ग्रामीणों द्वारा इस तरह स्थानीय विधायक के लिए आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग कर उन्हें बेइज्जत करने की कोशिश निश्चित रूप से एक ओछी मानसिकता को दर्शाता है। ऐसी घटनाएं इस गंभीर मुद्दे से ध्यान भटका सकती हैं और समाधान की राह को और मुश्किल बना सकती हैं, क्योंकि यह व्यक्तिगत द्वेष और राजनीतिक कटुता को बढ़ावा देती हैं।
सुलगते सवाल और अनिश्चित भविष्य
यह विवाद कई गहरे सवाल खड़े करता है
नैतिकता का प्रश्न: ग्रामीणों का अपने पैतृक मकान होने के बावजूद चारागाह पर आलीशान मकान बनाना कहां तक जायज है? यदि जमीन सिर्फ चारागाह के लिए दी गई थी, तो उस पर आवासीय निर्माण का अधिकार कहां से आता है
दावे की प्रामाणिकता: ग्रामीणों का दावा है कि उनके पूर्वजों ने 55 एकड़ जमीन चारागाह के लिए दी थी। पर क्या इसके कोई वैध, सरकारी दस्तावेज हैं जो इस दान को प्रमाणित करते हों?
भूमि का उपयोग और आबादी: 56 एकड़ जैसी बड़ी जमीन पर केवल 85 परिवारों का कब्जा होना भी एक सवाल है। वहीं, लगभग 2600 की आबादी वाले नकटी गांव में, राजधानी से सटी यह अरबों की जमीन आज कैसे उपयोग की जानी चाहिए? क्या इतने बड़े सार्वजनिक संसाधन पर कुछ परिवारों का कब्जा नैतिक रूप से सही है?
न्याय और मानवीयता: क्या सरकार अपनी शक्ति का इस्तेमाल कर इन परिवारों को बेदखल करेगी, जिससे एक बड़ा मानवीय संकट पैदा होगा? या फिर कोई ऐसा समाधान निकाला जाएगा जिसमें इन परिवारों का पुनर्वास हो और न्याय के साथ मानवीयता भी बनी रहे?
ग्रामीण अपनी जमीन बचाने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं। वहीं, सरकार भी अपने फैसले पर अडिग दिख रही है। अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि सरकार और ग्रामीणों के बीच इस ‘जंग’ में जीत किसकी होती है। यह मामला छत्तीसगढ़ के लिए एक नजीर बनेगा और तय करेगा कि विकास और जनहित के बीच संतुलन कैसे साधा जाता है।
सम्मानपुर नकटी में सरकारी जमीन को खाली कराने के लिए कब्जाधारियों को तीन बार नोटिस जारी हुई है जिसमे अब नियमानुसार कार्यवाही होगी।