उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि दो साल पुराने आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में पत्रकार अर्नब गोस्वामी और दो अन्य को दी गई अंतरिम जमानत तब तक जारी रहेगी जब तक बॉम्बे उच्च न्यायालय याचिका का निपटारा नहीं कर देता और साथ ही कहा कि न्यायपालिका को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आपराधिक कानून नागरिकों का चुनिंदा तरीके से उत्पीड़न करने के लिए हथियार ना बनें।
उच्चतम न्यायालय ने अर्नब को 11 नवंबर को अंतरिम जमानत दी थी। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने इस मामले में टीवी पत्रकार और दो अन्य को राहत देने के कारणों पर प्रकाश डाला। पीठ ने कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में दायर याचिका पर बंबई उच्च न्यायालय के फैसला करने के दिन से चार सप्ताह बाद तक पत्रकार अर्नब गोस्वामी की अंतरिम जमानत कायम रहेगी।
पीठ ने यह भी कहा कि उच्चतम न्यायलय,उच्च न्यायालयों, निचली अदालतों को राज्य द्वारा आपराधिक कानून के दुरुपयोग के प्रति सतर्क रहना चाहिए। उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आपराधिक कानून नागरिकों को चुनिंदा तरीके से उत्पीड़ित करने का हथियार ना बनें।
पीठ ने कहा, ‘‘उन नागरिकों के लिए इस अदालत के दरवाजें बंद नहीं किए जा सकते, जिन्होंने प्रथम दृष्टया यह दिखाया है कि राज्य ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया।’’ साथ ही कहा कि एक दिन के लिए भी किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता छीनना गलत है। उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में दो आरोपियों एन सारदा और फिरोज मोहम्मद शेख को 50-50 हजार रुपए के निजी मुचलके पर अंतरिम जमानत दी और उन्हें सबूतों से छेड़छाड़ नहीं करने और जांच में सहयोग करने के निर्देश दिए।