गरियाबंद। CG NEWS : जिले के फिंगेश्वर ब्लॉक के ग्राम बकली की महिलाओं का एक सपना कभी उड़ान भरने निकला था, लेकिन अब वो सपना टूटी मशीनों और बैंकों के नोटिसों के मलबे तले दब चुका है। करीब 15 साल पहले, 2011 में आजीविका मिशन (बिहान) के तहत गांव की आजीविका कल्याणी महिला समूह को सेनेटरी नैपकिन बनाने का काम सौंपा गया। इस उम्मीद से कि गांव की महिलाएं आत्मनिर्भर होंगी और बेटियों की सेहत के लिए गांव में सस्ते पैड तैयार होंगे।
इसके लिए ग्रामीण बैंक से चार लाख से अधिक का कर्ज मिला, मशीनें खरीदी गईं, काम शुरू हुआ। पैड तैयार हुए, मगर प्रशासन की बेरुखी और बाजार की कमी ने इस पहल की डोर ही काट दी। मशीनें खराब हुईं तो महिलाएं मैकेनिक के लिए दर-दर भटकीं, मगर कहीं से मदद नहीं मिली। पैड बिके नहीं, आमदनी शून्य रही, और उल्टे घर की जमा-पूंजी इस काम में झोंकनी पड़ी। आखिर थक-हार कर महिलाओं ने काम बंद कर दिया। आज वो मशीनें कबाड़ में तब्दील हो चुकी हैं।
समूह की 10 गरीब महिलाएं बैंक से बार-बार आ रहे कर्ज वसूली के नोटिस से दहशत में जी रही हैं। हालात ऐसे हैं कि उन्हें डर सता रहा है कि कहीं नोटिस की मार से टूटकर कोई साथी ऐसा कदम न उठा ले, जिससे गांव की ये कहानी किसी त्रासदी में बदल जाए।
महिलाओं का आरोप है कि प्रशासन ने समय रहते सुध नहीं ली। वे कर्ज माफी की गुहार लगा रही हैं और चाहती हैं कि एक बार फिर उन्हें सम्मानजनक रोजगार की दिशा में अवसर मिले। मगर उनकी पुकार सुनने वाला कोई नहीं। बकली गांव की इन महिलाओं की आंखों में अब भी उम्मीद की नमी बाकी है — कि कोई तो आएगा, जो उनके इस अधूरे सपने को फिर से जी उठने का मौका देगा।