पत्थलगांव। CG: मंडी परिसर की बहुचर्चित नजूल भूमि को लेकर एक बार फिर जांच की मांग की जा रही है। 1956 से जारी इस विवाद का खुलासा नगर पंचायत के पूर्व अध्यक्ष दुलार साय की शिकायत के बाद हुआ था। मामला करोड़ों की शासकीय जमीन को दस्तावेजों में कूटरचना कर हड़पने और नियमों के विरुद्ध विक्रय करने से जुड़ा है।
ऐसे हुआ फर्जीवाड़े का खुलासा
1956 में शासन ने गांव की निस्तारी के लिए किसानों से लगभग 34 एकड़ भूमि अधिग्रहित की थी। इसी दौरान धरमजयगढ़ निवासी घीसूराम अग्रवाल को तात्कालिक कलेक्टर द्वारा 10 डिसमिल का नजूल पट्टा जारी किया गया। आरोप है कि इस छोटे से पट्टे को बनवारीलाल अग्रवाल ने कूटरचना कर 12 एकड़ 27 डिसमिल में बदल डाला।
1972 में जब प्रशासन ने इस जमीन पर मंडी निर्माण की योजना बनाई तो बनवारीलाल ने आपत्ति दर्ज की। सरकार द्वारा कराई गई जांच में उस समय के एसडीएम ने मामले को फर्जी करार दिया, बावजूद इसके बनवारीलाल ने 7 एकड़ 65 डिसमिल जमीन का पट्टा अपने नाम करवा लिया और 4 एकड़ 12 डिसमिल मंडी को सौंप दी।
1984 में बेची गई विवादित जमीन
बाद में बनवारीलाल ने आठ रजिस्ट्रियों के माध्यम से उक्त जमीन रायगढ़ निवासी गोविंद अग्रवाल को बेच दी। यह भी आरोप है कि विक्रय पत्रों में जमीन की कीमत जानबूझकर कम दर्शाई गई जिससे शासन को करोड़ों का नुकसान हुआ।
शिकायत, जांच और एफआईआर
पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष दुलार साय ने 2000 में इस फर्जीवाड़े की शिकायत दस्तावेजों के साथ की थी, लेकिन प्रशासनिक सुस्ती के चलते मामला दबा रहा। 2016 में जब यह मामला दोबारा उठा तो जांच में भी वही पुराने फर्जी दस्तावेज सामने आए। पत्थलगांव थाना में बनवारीलाल अग्रवाल और उनके पुत्र ओमप्रकाश अग्रवाल पर IPC की धाराओं 420, 467, 468, 471 व 120B के तहत एफआईआर दर्ज हुई थी।हालांकि जांच की प्रगति को लेकर कई सवाल अब भी अनुत्तरित हैं और यह मामला आज भी रहस्य बना हुआ है।
न्यायालय के आदेश और अवैध प्लाटिंग
न्यायालय ने 7.65 एकड़ में से कुछ भाग गोविंद अग्रवाल को नजूल पट्टे की शर्तों पर प्रदान किया। इसके बाद पट्टाधारी और भूमि दलालों द्वारा प्लाट न. 29/2, रकबा 0.93 एकड़ भूमि पर अवैध प्लाटिंग कर, कम कीमत दिखाकर जमीन बेच दी गई।
यह क्षेत्र सत्यनारायण मंदिर से लेकर कृषि उपज मंडी, पुराना तहसील कार्यालय, नपं न्यू मार्केट, एसडीएम और एसडीओपी निवास जैसे महत्वपूर्ण सरकारी संस्थानों से घिरा है, और आज इसकी कीमत करोड़ों में आंकी जा रही है।
गंभीर आरोप और करोड़ों की हेराफेरी
आरोप है कि प्रीमियम, भूभाटक, खसरा नंबर, क्षेत्रफल, भवन निर्माण की अवधि सहित हर पहलू में कूटरचना कर 0.10 एकड़ भूमि को 12.14 एकड़ दिखाया गया और मूल पट्टाधारी घीसूराम का नाम हटाकर बनवारीलाल का नाम जोड़ा गया।बनवारीलाल और उनके पुत्र ने राजस्व अधिकारियों से सांठगांठ कर इस फर्जीवाड़े को वैध दस्तावेजों के रूप में उपयोग किया और बाद में यह जमीन गोविंद अग्रवाल को बेची। । अब यह देखना होगा कि क्या इस बार जांच के दायरे में वे अधिकारी भी आएंगे, जिनकी मिलीभगत से यह खेल दशकों तक चलता रहा। सार्वजनिक हित और राजस्व सुरक्षा को लेकर यह मामला प्रशासनिक सजगता और जवाबदेही की बड़ी परीक्षा बन चुका है।