भरत सिंह चौहान, जांजगीर-चांपा। CG : बलौदा थाना क्षेत्र के ग्राम नवागांव (अकलतरा विधानसभा) में एक अनुसूचित जाति परिवार पर सरपंच प्रतिनिधि और उसके समर्थकों द्वारा हमला, गाली-गलौज, तोड़फोड़ और जान से मारने की धमकी की शिकायत के बाद भी 10 दिन बीतने पर FIR दर्ज न होना प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। पीड़ित सतीश कुमार घोसले द्वारा यह शिकायत SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के तहत अजाक थाना में दर्ज कराई गई थी।
दो बार हमला, जातिसूचक गालियाँ और धमकी
13 जून और 15 जून की शाम को गांव के सरपंच प्रतिनिधि परमानन्द राठौर ने 50–60 लोगों के साथ मिलकर कथित रूप से पीड़ित के घर पर हमला किया। परिवार के अनुसार, “जातिगत गालियाँ, सामाजिक बहिष्कार और जान से मारने की धमकियाँ” दी गईं। भय के कारण परिवार ने घर में खुद को बंद कर लिया। पीड़ित का कहना है कि पुलिस मे बार-बार शिकायत के बावजूद अब तक FIR दर्ज नहीं हुई!
इस सम्बन्ध मे जब हमने पुलिस कप्तान विजय पांडे चर्चा की तो उन्होंने कहा “हम पहले पीड़ित पक्ष के बयान ले रहे हैं ताकि केस के हर पहलु की जांच हो सके। आरोपी को उचित समय पर बुलाकर कार्रवाई की जाएगी।
वही दूसरी तरफ भीम आर्मी ने दी आंदोलन की चेतावनी
भीम आर्मी भारत एकता मिशन (छत्तीसगढ़) के वरिष्ठ जिला उपाध्यक्ष सुरेन्द्र लहरे ने कहा: “पीड़ित परिवार को जातिगत आधार पर प्रताड़ित किया गया है और प्रशासन की चुप्पी इस उत्पीड़न को बढ़ावा दे रही है। यदि कार्रवाई नहीं हुई, तो भीम आर्मी चरणबद्ध आंदोलन करेगी, जिसकी जिम्मेदारी प्रशासन की होगी।”
इस मामले मे मूलनिवासी मुक्ति मोर्चा ने भी विरोध दर्ज करवाते हुये राष्ट्रीय संयुक्त मोर्चा के राष्ट्रीय संयोजक ऋषिकर भारतीय ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुये कहा:
“SC/ST एक्ट के तहत FIR 24 घंटे में दर्ज होनी चाहिए, लेकिन यहाँ 10 दिन बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। यह सरकार की संवैधानिक प्रतिबद्धता की कसौटी पर प्रश्नचिन्ह है। यदि प्रशासन कोताही बरतता है, तो मूलनिवासी मुक्ति मोर्चा आंदोलन के रास्ते पर उतरेगा।”
अधिनियम क्या कहता है –
SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के अनुसार:
जातिसूचक गाली, धमकी, बहिष्कार, हमला आदि पर सीधी FIR और गिरफ्तारी अनिवार्य है।
FIR दर्ज करने में देरी स्वयं एक दंडनीय लापरवाही मानी जाती है।
कही ना कही यह मुद्दा पुलिस की कार्यवाही की धीमी गति के कारण जिले के शांत माहौल को गर्म करने का कारण बनने जा रहा है, एक ओर दलित परिवार लगातार उत्पीड़न और असुरक्षा से जूझ रहा है, वहीं प्रशासन की धीमी कार्यवाही से आक्रोशित सामाजिक संगठन अब आंदोलन की चेतावनी दे रहे हैं। यह मामला सिर्फ एक गांव नहीं, पूरे जिले की संवैधानिक संवेदनशीलता की परीक्षा बन चुका है।
देखने वाली बात होगी कि प्रशासन अपनी वही कछुए वाली चाल पर चलती है या मुद्दे की गंभीरता आकलन कर समस्या विकराल रूप लेने से पहले कोई समाधान निकाल पाती!