गरियाबंद, मैनपुर | CG NEWS: प्रधानमंत्री आदिवासी न्याय महाभियान के तहत मंजूर 95 लाख रुपए की लागत वाली सड़क और पुलिया योजना अब 300 से ज्यादा कमार आदिवासी परिवारों के लिए मुसीबत बन चुकी है। मैनपुर के बुर्जबहाल से कमार पारा तक बनने वाली यह सड़क जनजीवन की जीवनरेखा मानी जा रही थी, लेकिन अब यह अधूरी निर्माण सामग्री, गड्ढों और कीचड़ का गढ़ बनकर रह गई है।
यह काम कुरूद के एक रसूखदार ठेकेदार “मैसर्स पवार कंस्ट्रक्शन” को सौंपा गया था, लेकिन ठेकेदार ने केवल पुल की आधी ढलाई कर काम रोक दिया। पिछले 16 महीनों से न तो कोई मजदूर दिखा, न मशीन, और न ही कोई जवाबदेही तय की गई है। नतीजा यह है कि ग्रामीणों की आवाजाही पूरी तरह ठप हो गई है। बारिश में स्थिति और भी बदतर हो चुकी है—बच्चों का स्कूल पहुंचना बंद, बीमारों का अस्पताल ले जाना मुश्किल और किसानों की फसलें मंडी तक नहीं पहुंच पा रहीं।
सबसे शर्मनाक बात तब सामने आई जब ग्रामीणों की शिकायत करने पर ठेकेदार के मैनेजर ने सीधा जवाब दिया—
“जहां जाना है जाओ, हम मंत्री के आदमी हैं, मेरा कोई क्या कर लेगा।”
इस बयान ने प्रशासनिक व्यवस्था और जन सरोकारों की मर्यादा पर सीधा तमाचा मारा है।
ग्रामीणों की गुहार:
ग्रामीणों ने प्रशासन से लेकर जनप्रतिनिधियों तक कई बार गुहार लगाई, लेकिन अब तक कोई भी ठोस कार्यवाही नहीं हुई। ग्रामीणों का कहना है कि अगर जल्द समाधान नहीं हुआ, तो वे अनिश्चितकालीन सड़क जाम और आंदोलन करेंगे।
अब सवाल यह है कि क्या सरकारी योजनाएं ठेकेदारों की जेब भरने का जरिया बन चुकी हैं?
और क्या ‘मंत्री के आदमी’ होने की आड़ में गरीब आदिवासियों की तकलीफें अनदेखी कर दी जाएंगी?
ग्रामीणों की एक ही मांग है— काम दोबारा शुरू हो और दोषियों पर सख्त कार्रवाई हो।
वरना, आदिवासी न्याय योजना की जगह इसे “आदिवासी अन्याय योजना” कहना ज्यादा सटीक होगा।