आज पूरा देश 72 वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। हम अपने संविधान की दुहाई देकर कर्तव्य और निष्ठा की शपथ लेने और लिवाने की बात कह रहे हैं। देश की प्रगति और उन्नति के लिए जाने कितने जतन हो रहे हैं, पर हमारे देश में एक दूसरा भारत भी है, जहां गरीबी, मुफलिसी और तकलीफ से मासूम गुजर रहे हैं। एक ऐसी ही हकीकत सामने आई है, जिसे जानकर हर किसी को उस दर्द का अहसास जरूर होगा।
यह पूरी दास्तां झारखंड के गुमला जिले की है, जहां अपने मां-बाप को भूख से परेशान देखकर 10 साल की बेटी शराब बेचने निकल पड़ी। शराब बेचकर वह मां-बाप का पेट भरना चाहती थी। साप्ताहिक बाजार में वह शराब बेच रही थी कि उसी वक्त पुलिस का छापा पड़ गया। इससे बाजार में भगदड़ मच गई, लेकिन बच्ची वहीं शराब के साथ खड़ी रही। कामडारा थानेदार देवप्रताप प्रधान ने बच्ची के पास जाकर पूछा कि वह शराब क्यों बेच रही है, तो बच्ची ने डरते हुए कहा कि सर मेरे घर में खाना नहीं है। मां-बाप भूखे हैं। ऐसे में उनके भूख को मिटाने के लिए क्या करती। उस मासूम बेटी के सवाल ने थानेदार को झकझोड़कर रख दिया।
बच्ची ने बताया कि वह गांव के ही एक चाची से शराब का जार उधार लेकर आई है। जिसे बाजार में बेचकर उससे मिलने वाले पैसों से चाची का उधार चुकाएगी और अपने माता-पिता का भूख मिटाएगी। मासूम बच्ची की बात सुनकर थानेदार की आंखें भर आईं। उन्होंने पूछा शराब के बदले सब्जी बेचकर भी तो रुपये कमा सकती हो। बच्ची ने जवाब दिया सर सब्जी खरीदने के लिए उसके पास रुपये नहीं हैं। शराब उधार में मिल गई, सब्जी कहां से लाएगी। इतना सुनते ही थानाप्रभारी ने अपनी पाॅकेट से एक हजार रुपया निकाल कर बच्ची को दिया और कहा कि अब दोबारा कभी शराब नहीं बेचना। इस रुपये से सब्जी की खरीद-बिक्री शुरू करो और अपने मां-पापा को दुकान पर बैठने के लिए कहो। थानेदार ने उस बच्ची को स्कूल में दाखिला लेने के लिए कहा और भरोसा दिलाया कि अगर उसे पढ़ाई में कोई परेशानी होती है तो वह उनसे आकर मिले। उसकी पढ़ाई की सारी व्यवस्था भी वह करा देंगे। इतना सुनकर मासूम बच्ची थानेदार के सामने कान पकड़कर उठक-बैठक करने लगी। थानेदार ने हंसते हुए बच्ची को प्यार से अपने गले लगा लिया। फिर घर भेज दिया।