देश में किसान आंदोलन के सौ दिन पूरे हो चुके हैं। तीनों कृषि कानूनों को रद्द कराने के लिए किसान लगातार धरना दे रहे हैं। अब महापंचायतों और रैलियों का दौर आरंभ हो गया है। गणतंत्र दिवस के बाद केंद्र सरकार की ओर से बैठक का बुलावा नहीं आया है। हालांकि दोनों पक्ष बैठक करने के लिए उत्सुक हैं। इस सारी जद्दोजहद के बाद अगर किसान आंदोलन का खर्च देखें, तो अभी तक वह 308 करोड़ रुपये के पार जा चुका है। इसमें ट्रैक्टर परेड, उससे पहले का आंदोलन और गणतंत्र दिवस के बाद अभी तक के 38 दिन का आंदोलन शामिल है। इसके अलावा छोटी-बड़ी 60 से अधिक महापंचायतों का खर्च भी उक्त आंकड़े में जोड़ा गया है। संयुक्त किसान मोर्चे के वरिष्ठ सदस्य हन्नान मौला के अनुसार, हर किसान अपने हिस्से का चंदा देता है। कई संगठन भी किसानों की मदद के लिए आगे आए हैं।
किसान ने नहीं मानी हार
हन्नान मौला कहते हैं, आंदोलन की सबसे अच्छी बात यही है कि अभी तक किसान ने हार नहीं मानी है। अब तो सारे देश के किसान और आम जन मानस भी आंदोलन का हिस्सा बनता जा रहा है। महंगाई आसमान छू रही है, लेकिन अपने जीवन की लड़ाई लड़ रहे किसान का हौसला कहीं से भी कम नहीं हुआ है। केंद्र सरकार अभी अहंकार में है। जब उसे अपनी जमीनी हकीकत पता चलेगी तो वह बात भी करेगी और तीनों कानूनों को वापस भी लेगी।
26 जनवरी तक किसान आंदोलन और ट्रैक्टर परेड के खर्च को मिलाएं तो वह 225 करोड़ रुपये से अधिक पहुंच गया था। हालांकि इस राशि में खाना-पीना आदि शामिल नहीं था। इसमें केवल पेट्रोल और डीजल का खर्च जोड़ा गया है। किसान संगठनों के नेताओं का कहना था कि ट्रैक्टर परेड वाले दिन दो लाख ट्रैक्टर एवं दूसरे वाहन दिल्ली और उसके आसपास तक पहुंचे थे। इसके अलावा गणतंत्र दिवस से पहले दो माह के दौरान लगभग दो लाख वाहन ऐसे थे जो अपनी बारी के हिसाब से दिल्ली की बाहरी सीमा तक आते-जाते रहे थे। इनके साथ ही एक लाख कार व बाइक जैसे हल्के वाहन भी शामिल रहे। पंजाब जम्हूरी किसान सभा के महासचिव कुलवंत सिंह संधू ने तब दावा किया था कि दो से ढाई लाख ट्रैक्टर दिल्ली बॉर्डर के आसपास बाहर खड़े हैं।
एक महापंचायत में खर्च हो जाते हैं पांच लाख रुपये तक
गणतंत्र दिवस के बाद दिल्ली की सीमाओं पर जारी तीनों धरना स्थलों पर रोजाना लगभग तीस हजार किसान जुट पा रहे हैं। अब तक के 38 दिनों का हिसाब जोड़ें तो एक किसान के खाने-पीने पर न्यूनतम सौ रुपये प्रतिदिन खर्च हो रहे हैं। चाय पानी का खर्च अलग है। ऐसे में यह खर्च करीब साढ़े 13 करोड़ रुपये के पार चला जाता है। इससे पहले के 62 दिन का भोजन खर्च देखें तो वह रोजाना 90 हजार किसानों के हिसाब से 54 करोड़ रुपये बैठता है। अब महापंचायतों और रैलियों का दौर चल रहा है। बहुत से व्यापारिक और सामाजिक संगठन अपने तरीके से किसानों की मदद कर रहे हैं तो ऐसे में महापंचायत या रैली का खर्च कुछ कम हो जाता है।