दिल्ली। देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगी आग को लेकर संसद में जोरदार बवाल मचा। और यह तमाशा तब तक चलता रहेगा, जब तक कीमतें गिर नहीं जाती, लेकिन सवाल यह है कि आखिर इन कीमतों को कैसे कम किया, जबकि देश के कई राज्यों की सरकार ने जिद ठान रखी है कि पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी से बाहर रखा जाए। यदि पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाया जाता है, तो पूरे देश में पेट्रोल की कीमत अधिकतम 75 रुपए तो डीजल की कीमत 68 रुपए प्रति लीटर हो सकता है।
वर्तमान परिस्थितियों की बात की जाए तो कच्चे तेल की कीमत 60 डाॅलर प्रति बैरल है। इसका तात्पर्य यह है कि भारत में पेट्रोल का बेस प्राइज 33.54 रुपए है। इस पर केंद्र सरकार 32.90 रुपए तो राज्य की सरकारें 21.04 रुपए टैक्स वसूल रही हैं। तो डीलर का कमीशन 3.70 रुपए होता है। यही वजह है कि पेट्रोल की कीमत 90 रुपए प्रति लीटर पहुंच गया है। यही हाल डीजल का है। जबकि जीएसटी के दायरे में पेट्रोल और डीजल को लाया जाए तो सीधे तौर पर उपभोक्ताओं को 19 से 25 रुपए तक की राहत आसानी से मिल सकती है।
इस मामले को लेकर रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया के गर्वनर शक्तिकांत दास ने पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लिए जाने की सिफारिश की है। उनका कहना है कि ऐसा करने से सीधे तौर पर देश की जनता को फायदा मिल सकेगा। उन्होंने दोनों पहलुओं पर बात रखी है। आरबीआई गर्वनर का कहना है कि ऐसा करने से एक तरफ जहां पेट्रोल की कीमतों से सीधे आमजन को राहत मिलेगी, तो दूसरी तरफ बढ़ी हुई महंगाई पर भी लगाम लग पाएगा, क्योंकि डीजल की कीमतें कम होने से परिवहन शुल्क में कमी आएगी, जिससे रोजमर्रा के उपयोगी सामानों के ट्रांसपोर्टेशन के पीछे लगने वाली कीमत कम हो जाएंगी।
सरकारी राजस्व की बात की जाए तो निश्चित तौर पर राज्य सरकारों के खजाने पर प्रभाव पड़ेगा, लेकिन केंद्रीय खजाने पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा, पर इससे आम जतना की दिक्कतें कम हो जाएंगी और उन्हें राहत मिल जाएगी।