देवकर:- नगर पंचायत देवकर के वार्ड-07 की रहवासी एवं जैन समाज की लड़की सुश्री श्रद्धा जैन विगत कल अपनी 25 साल की वैराग्य काल मे जैन समुदाय की दीक्षा लेकर नगर की पहली साध्वी बन गयी है।
आमतौर पर लड़का हो या लड़की, ख्वाहिश होती है कि ज़िंदगी ऐशोआराम वाली हो, घर, गाड़ी, बढ़िया नौकरी, घूमना-फिरना हो।लेकिन इसके उलट देवकर जैन समाज में पहली बार 25 साल की एक लड़की ने दुनिया का मोह-माया का त्याग एवं दुनिया की चकाचौंध व चमक- धमक छोड़ सफ़ेद कपड़े धारण करते वैराग्य की राह पर चलते हुए अध्यात्म की राह पकड़ ली।
दरअसल देवकर नगर में काफी तादाद में जैन समुदाय के अनुयायी निवास करते है।वही जैन समाज के समस्त पर्व व कार्यक्रम को पूरी हर्षोल्लास के साथ समुदाय के लोगों द्वारा मनाया जाता है।इसी दरमियान लॉकडाउन के इस दौर में 25 साल की श्रद्धा कुछ समय पूर्व में ही सांसारिक मोहमाया छोड़ दीक्षा लेकर साध्वी बनने का फैसला लिया था।फलत: कल परम श्रध्देय आचार्य प्रवर 1008 श्री विजदराज जी म.सा. की उपस्थिति में पावन निश्रा के साथ परम् विदुषी महासती-पूज्या श्री प्रभावती जी.म.सा के द्वारा प्रवज्या पदात्री दी गयी। दीक्षा लेने बाद अब श्रद्धा को नया नाम साध्वी श्रेष्ठता नाम मिला है।देवकर के जैन भवन में श्रद्धा की दीक्षा शुरू हुई।जैन धर्म के शीर्ष मुनियों ने उन्हें दीक्षा दी।इस दौरान लॉक डाउन के प्रोटोकॉल का पालन करते हुए सीमित संख्या में परिजन, समाज के लोग व अन्य साध्वियां मौजूद रहीं।
शिक्षित व सम्पन्न परिवार से है श्रद्धा का ताल्लुक
गौरतलब हो कि मूलतः देवकर की जन्मी श्रद्धा सुराणा नगर की प्रतिष्ठित सुराणा परिवार से ताल्लुक रखती है।उनके पिता पारसमल जी सुराणा व माता रेशमी बाई जी सुराणा है।साथ ही घर में दो भाई व एक बहन सहित बड़ा परिवार है।इसके अलावा श्रद्धा बीएससी की प्रथम वर्ष की छात्रा रही है।कई क्षेत्रों में उनकी रुचि रही है।लेकिन उन्होंने सब कुछ छोड़ अध्यात्म को चुन ली है।जिससे अब सभी खुश हैं।
साध्वी बनने से पहले दुल्हन की तरह सजी, कराया फ़ोटो शूट
चूंकि जैन समाज के रिवाज के मुताबिक कुमारी श्रद्धा साध्वी बनने से पहले दुल्हन की तरह सजी, आकर्षक जेवर पहन हाथों में मेहंदी लगाई। इतना ही नहीं सिमरन ने प्री दीक्षा वीडियो-फोटो भी शूट कराया।जिसमें वह पारंपरिक लाल वस्त्र में सफेद मास्क धारण कर अन्य कई तरह की ड्रेस पहने दिख रही हैं।जिसमे बेहद खूबसूरत लग रहीं।जिसे बाद में सब चीज़ को अपनी मां को दे दिया और सफ़ेद वस्त्र धारण कर लिए।इस दौरान उन्होंने अपना बाल भी त्याग दिए।उन्होंने इससे पहले अपना मनपसंद खाना खाया एवं अपने परिवार के साथ समय बिताया।जिसके बाद शुश्री-श्रद्धा सुराणा अब साध्वी मासा. श्रेष्ठता बन गयी।
संयम जीवन अंगीकार कर साधना में लीन होना
बरहहाल दीक्षा के दौरान श्रद्धा ने कहा कि उन्होंने इतनी छोटी उम्र में काफी कुछ सीखा।अब तक अपनी ज़िंदगी में काफी आनंद लिया। लेकिन कहीं भी शांति नहीं मिली।वह शांति चाहती हैं। इसके साथ ही संयम जीवन अंगीकार कर साधना में लीन हो जाना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि वह अभिभूत हैं।उनका आत्मविश्वास आसमान छू रहा है।उन्होंने कहा कि मुझे सत्य मार्ग पर चलना है।मुझे बेहद अच्छा लग रहा है।