रायपुर। बीजेपी की अगुवाई में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने झारखंड की पूर्व राज्यपाल और ओडिशा से आने वालीं आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनाया है। यदि मुर्मू चुनाव जीतती हैं तो वह देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति होंगी। कई नामों पर चल रही चर्चा के बीच भाजपा ने मुर्मू को ही राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार क्यों बनाया? राजनीतिक जानकार भाजपा के इस दांव के पीछे राजनीतिक रणनीति तलाशने में जुटे हैं। माना जा रहा है कि भगवा दल ने मुर्मू के सहारे देश के कई राज्यों में बड़ी संख्या में रहने वाले आदिवासी समुदाय पर पकड़ को मजबूत करने का प्रयास किया है। इसी साल गुजरात में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में भी पार्टी को इसका लाभ मिल सकता है।
दरअसल, गुजरात में आदिवासी मतदाता कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं और यदि ये एकमुश्त किसी पार्टी की ओर रुख कर जाएं तो लगभग यह तय कर सकते हैं कि सत्ता किसके हाथ होगी। दशकों से भाजपा के गढ़ रहे गुजरात में आदिवासियों की ताकत को देखते हुए कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी पूरा जोर लगा रही है। ऐसे में एक आदिवासी महिला को देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बिठाकर भाजपा आदिवासियों के सम्मान के रूप में पेश कर सकती है। पार्टी रणनीतिकारों को भरोसा है कि भाजपा को ओडिसा, झारखंड, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे कई राज्यों में काफी फायदा हो सकता है।
भाजपा को लगा था 2017 में झटका
भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव जीत जरूर हासिल की थी, लेकिन लंबे समय बाद कांग्रेस से उसे कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ा था। गुजरात की कुल आबादी में आदिवासियों की करीब 14.8 फीसदी हिस्सेदारी है और 27 सीटें अनूसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। 2017 में भगवा दल आधी सीटों पर भी कमल नहीं खिला पाई थी। माना जा रहा है कि द्रौपदी मुर्मू के सहारे भाजपा इस बार अधिकतर सीटों पर कमल खिलने की उम्मीद कर रही है।
आदिवासी वोटरों पर कांग्रेस से आप तक की नजर
परंपरागत रूप से गुजरात में आदिवासी वोटरों पर कांग्रेस की अच्छी पकड़ रही है, लेकिन पिछले दो दशकों में बीजेपी ने उत्तर में अंबाजी से दक्षिण में अंबेरगांव तक फैले आदिवासी बेल्ट में सेंध लगा दी थी। लेकिन 2017 से ही एक बार फिर कांग्रेस यहां अपने खोए जनाधार को पाने के लिए पूरा जोर लगा रही है। इस बार आम आदमी पार्टी की भी नजर आदिवासी समुदाय पर है।