बस्तर में गोचा पर्व की आज रथ यात्रा के साथ ही शरू हो चुकी है। ऐसे में इस पर्व के बारे में जानना जरूरी हो जाता है। बस्तर जिले में दशहरा के बाद जिस पर्व का बेसब्री से इंतज़ार होता है वह है गोचा पर्व बस्तर गोंचा पर्व के महत्त्व बहुयामी है जिसमे पौराणिक मान्यताओं के आलावा आम जनमानस के लिए सफल,एवम सुखी जीवन का सन्देश के साथ जनकल्याण कारी प्रभाव दिखाई देता है
गोचा मनाने का कारण
गोंचा पर्व को मनाये जाने के कई कारण है -कहते है जब भगवान् जगग्न्नाथ नगर भ्रमण पर निकलते है तो गोंचा पर्व होता है इस दौरान भगवान् को सलामी देने के लिए यहाँ बांस की बनी एक “बन्दुक” जिसे तुपकी कहते है दृ द्वारा सलामी दी जाती है आइये बात करते है सिलसिले वार किस तरह इस पर्व का विधान किया जाता है ज्ञात स्रोतों के आधार पर इस पर्व का सबसे पहला रस्म है चंदन जात्रा
क्या है चंदन जात्रा ?
गोंचा पर्व की शुरुवात में चन्दन जात्रा विधान के साथ शुरू होती है । इस विधान के अनुसार भगवान् 15 दिनों के लिए अनसर काल में होते है तथा अस्वस्थ होते है , इस दौरान भगवान का दर्शन करना वर्जित होता है पूरे अनसर काल में भगवान के स्वस्थ लाभ के लिए 360 घर ब्राम्हण आरणक्य समाज द्वारा औषधि युक्त भोग अर्पण किया जाता है और भगवान् द्वारा लिया गया भोजन को प्रसाद के रूप में भक्तो की प्रदान किया जाता है । एसी मान्यता है कि इस प्रकार के भोजन को लेकर वर्ष भर स्वस्थ लाभ लिया जाता है । भोजन औषधि युक्त होने की वजह से यह काफी गुणकारी होता है तथा लोग इसमें चमत्कारी प्रभाव महसूस करते है।
बहरहाल,भगवान् का अनसर खत्म होने के बाद गोंचा पर्व का अगला विधान शुरू होता है । गोंचा पर्व के आयोजनों में है
अनसर काल
नत्रोत्सव
गोंचा रथ यात्रा
हेरा पंचमी
बहुडा गोंचा
देश शयनी एकादशी
615 वर्षों से चली आ रही इस परंपरा की शुरुआत चन्दन जात्रा के साथ प्रतिवर्ष शुरू होती है । निशुल्क उपनयन संस्कार, वृद्ध जनों का सम्मान, तुपकी कारीगरों का सामान, छप्पन भोग एवं सास्कृतिक कार्यक्रम भी होंग। होते हैं
इस दौरान कुछ अन्य सामाजिक कार्य भी किए जाते हैं उनमें प्रमुख है ।
इस वर्ष भी गोंचा महापर्व में तीन रथों की परिक्रमा होगी संचालन की जिम्मेदारी गोंचा दिवस के लिए आसना, करीत गाँव, जैबेल, बनियागांव, तथा तालुर के क्षेत्रीय समिति को दी गयी है वहीँ दूसरी तरफ दूसरी तरफ बहुडा गोंचा के दिन रथ वापसी संचालन का जिम्मा बिन्ता, जगदलपुर, गुनपुर, कुम्हली, कोंडागांव, तथा तितिर गाँव को दिया जाता है। ।
साभार: बस्तर सियान