चीन (China)में कोविड लॉकडाउन(covid lockdown) के बढ़ते असर के कारण दुनिया के कई देश खरीदारी के लिए अब चीनी विकल्पों की तलाश कर रहे हैं। इस कड़ी में भारत सबसे बड़ा ठिकाना साबित हो रहा है। रिपोर्ट बताती है कि चेक गणराज्य, मिस्र, ग्रीस, जॉर्डन, मैक्सिको, स्पेन, तुर्की, पनामा (Czech Republic, Egypt, Greece, Jordan, Mexico, Spain, Turkey, Panama)और दक्षिण अफ्रीका (South Africa)जैसे देश कपड़ों की खरीदारी के लिए चीन के बदले भारतीय कंपनियों (Indian companies)से बातचीत शुरू कर दी है।
स्पेन, दक्षिण अफ्रीका और ग्रीस से आई मांग
नोएडा अपैरल एक्सपोर्ट क्लस्टर के प्रेसिडेंट ललित ठुकराल ने इकॉनमिक टाइम्स से बातचीत में कहा है कि स्पेन की गारमेंट कंपनी सोटोरेव्स एसएल टाई और डाई और प्रिंटेड शर्ट के 1 लाख पीस चाहती है। उनके साथ बातचीत शुरू हो गई है। उन्होंने आगे बताया है कि दक्षिण अफ्रीका का एक अन्य खरीदार लिजार्ड पीटीआई जिसके 180 स्टोर हैं, महिलाओं के कपड़े खरीदना चाहता है, जबकि ग्रीस का एक खरीदार पुरुषों के कपड़े चाहता है। बता दें कि नोएडा अपैरल एक्सपोर्ट क्लस्टर की 3,000 इकाइयां हैं जिनका सालाना कारोबार 35 हजार करोड़ का है और इसमें करीब 9 लाख लोग कार्यरत हैं।
मैन्युफैक्चरर्स की जगी उम्मीदें
चीन ने हाल ही में दो महीने के लॉकडाउन के बाद शंघाई सहित कई शहरों में कोविड प्रतिबंधों में ढील दी लेकिन चीन की जीरो कोविड पॉलिसी जारी है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि यही कारण है कि खरीदार अभी भी चीन में अनिश्चितता देखते हैं। नोएडा एक्सपोर्ट क्लस्टर में नए खरीदारों के आने से तिरुपुर गारमेंट मैन्युफैक्चरर्स के लिए भी उम्मीद जगी है।
कपास की बढ़ती कीमतें चिंता का कारण?
तिरुपुर एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष राजा शनमुगम ने बताया है कि हम भारत में बुने हुए कपड़ों के सबसे बड़े निर्माता हैं। अगर वे नोएडा आते हैं, तो वे भी हमारे पास आएंगे। हमारी एकमात्र चिंता कपास की बढ़ती कीमतें हैं, जो निर्धारित समय सीमा के भीतर माल की डिलीवरी को प्रभावित कर सकती हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि कपास की ऊंची कीमतें निर्यात के अवसर को कम कर रही हैं लेकिन उसके बावजूद भारतीय निर्माताओं के लिए एक बड़ा बाजार खुल गया है।
अमेरिका और यूरोप भेजे जा रहे कपड़े
भारत ने वित्त वर्ष 2022 में अपना उच्चतम कपड़ा और परिधान निर्यात 44।4 बिलियन डॉलर दर्ज किया, जो वित्त वर्ष 2021 की तुलना में 41 फीसद अधिक है। हिस्सेदारी की बात करें तो 27 फीसद के साथ अमेरिका टॉप पर था। इसके बाद 18 फीसद के साथ यूरोपियन यूनियन, 12 फीसद के साथ बांग्लादेश और 6 फीसद के साथ संयुक्त अरब अमीरात का स्थान था।