कोरोना काल की त्रासदी से घर क्या, राज्य क्या और पूरा देश क्या..? उबर नहीं पाया है। छत्तीसगढ़ में कोरोना की दूसरी लहर के बाद परिस्थितियां सामान्य होते जरूर नजर आ रही हैं, लेकिन सही मायने में लोगों के दिलों-दिमाग में अब भी खौफ है। जिसका असर परिवहन व्यवसाय पर साफ नजर आ रहा है। जहां एक ही रास्ते पर सैकड़ों बसे भरकर फर्राटा भरती थी, गिनती की बसों के चलने पर भी सीटें खाली हैं। बस मालिकों की मानें तो उनका डीजल खर्च भी नहीं निकल पा रहा है, जिसकी वजह से आज छत्तीसगढ़ यातायात संघ के पदाधिकारियों ने एक दिवसीय धरना देकर किराया बढ़ाए जाने सहित दूसरी मांगों को सरकार के समक्ष रखा है, जिस पर तत्काल निर्णय किए जाने की मांग भी शामिल है।
https://youtu.be/FtTT1hpUrBE
रायपुर। देश में विगत डेढ़ साल से कोरोना की त्रासदी का सामना हर कोई कर रहा है। बच्चों के स्कूल आज भी बंद हैं, दफ्तरों में काम भी सही मायने में नहीं हो रहा है। ज्यादातर लोग खौफ की जिंदगी जी रहे हैं, बड़ी तादाद में सरकारी दफ्तरों की कुर्सियां इसलिए खाली हो गईं हैं, क्योंकि कोरोना ने उन कर्मियों को निगल लिया है। तो सार्वजनिक क्षेत्रों में खामोशी का दौर अब भी जारी है। लंबी दूरियां भी लोग अपनी स्कूटर, बाइक और कार में पूरी कर ले रहे हैं, जिसकी वजह से यात्री बसों को पूरी तरह से यात्री भी नहीं मिल पा रहे हैं।
एक दिवसीय धरना प्रदर्शन का आयोजन
यात्री बसों के संचालकों को जिस तरह की दिक्कतें पेश आ रही हैं, उसकी वजह से उन्हें बसों को बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है, पर खरीदार नहीं मिल पा रहे हैं। इस वजह से आज राजधानी में छत्तीसगढ़ यातायात महासंघ के बैनर तले एक दिवसीय धरना प्रदर्शन का आयोजन किया गया। महासंघ के पदाधिकारियों का कहना है कि गिनती की बसों के चलने के बावजूद पर्याप्त राशि एकत्र नहीं हो पा रही है, डीजल का खर्च नहीं निकल पा रहा है। ऐसे में ड्रायवर, कंटेक्टर और खलासी का खर्च कैसे चल पाएगा। बस मालिकों का परिवार कैस चलेगा..? यह बड़ा सवाल है।
यह है प्रमुख मांगे –
1. यात्री किराया में तत्काल वृद्धि का निर्णय लिया जाए। वजह डीजल की कीमतों में वृद्धि और यात्रियों की कमी की वजह से खर्च नहीं निकल पा रहा है।
2. यात्री किराया निर्धारण के लिए स्थायी समिति का निर्माण किया जाए।
3. निष्प्रयोग की बसों और उसके परमिट के लिए तय सीमा समय को समाप्त किया जाए।