Chhattisgarh News : छत्तीसगढ़(Chhattisgarh ) के कोरबा (Korba)जिले के रहने वाले शुभम डिक्सेना(shubham dixena), राइजिंग यूथ फाउंडेशन(Rising Youth Foundation) नामक एक एनजीओ के संस्थापक हैं। यूके सरकार की तरफ से शुभम को प्रतिष्ठित शेवनिंग स्कॉलरशिप के लिए चुना गया है। इस स्कॉलरशिप कार्यक्रम के तहत भविष्य के युवा नेतृत्वकर्ताओं को यूके में किसी भी विश्वविद्य़ालय (university)में, किसी भी विषय में एक साल के लिए मास्टर्स प्रोग्राम (masters program)करने की आजादी होती है, जिसका पूरा खर्च यूके सरकार (UK government)वहन करती है।
मेहनत और लगन किसी पिछड़े क्षेत्र या स्थिति की मोहताज नहीं होती
शुभम कोरबा जिले के कटघोरा ब्लॉक के एक छोटे से गांव डूड़गा से आते हैं। उनके पिता नरेंद्र कुमार डिक्सेना कोरबा एसईसीएल ढेलवाडीह प्रोजेक्ट अंतर्गत कार्यरत हैं। प्राथमिक शिक्षा सरस्वती शिशु मंदिर से करने के बाद शुभम ने आगे की पढ़ाई बिलासपुर के एचएसएम पब्लिक स्कूल से की। लोगों के नजरिए में भले ही शुभम एक गांव के एक छोटे से समुदाय से हों, लेकिन युनाइटेड किंगड्म की प्रतिष्ठित स्कॉलरशिप हासिल कर उन्होंने अपने गांव को ही नहीं, बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ को गौरवान्वित किया है।
लंदन में करेंगे आगे की पढ़ाई
शुभम ने न सिर्फ इस स्कॉलरशिप के लिए सफलता पाई, बल्कि वे लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस (एलएसई) में एडमिशन के लिए भी सफल हुए। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों में से एक है। शुभम ‘सोशल इनोवेशन एंड आंत्रप्रेन्योरशिप’ विषय में अपना मास्टर्स वहां से पूरा करेंगे। ये बड़े गौरव की बात है कि भारतीय संविधान के जनक माननीय बीआर अंबेडकर जी ने भी लंदन के एलएसई विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा ग्रहण की थी। इसके साथ ही एलएसई के पूर्व छात्रों और संकाय सदस्यों को अर्थशास्त्र, शांति और साहित्य के क्षेत्र में 18 नोबेल पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। जानकारी के मुताबिक देश-दुनिया के करीब 37 सफल नेताओं ने एलएसई से शिक्षा ग्रहण की है। अब शुभम भी इस क्षेत्र में बुलंदियों को छूने के लिए बढ़ चुके हैं।
“कोई भी सफलता संघर्षों और मेहनत के बिना मुमकिन नहीं”
स्कूल के समय से ही शुभम समाज को लेकर कुछ करने की ललक रखते थे। हमेशा से ही सामाजिक गतिविधियों के प्रति उनका गहरा झुकाव रहा है। उन्होंने कई गैर सरकारी एवं सामाजिक संगठनों के साथ काम करते हुए अपने कुशल नेतृत्व का प्रदर्शन किया है। अपने किशोरावस्था के सपने की खोज में शुभम ने साल 2017 में राइजिंग यूथ फाउंडेशन नामक एनजीओ की शुरुआत की। जिसका उद्देश्य पिछड़े समुदायों के युवाओं को सशक्त बनाना और जमीनी स्तर पर डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना है।
इन बीते वर्षों में शुभम ने करीब 500 से ज्यादा छात्रों की मार्गदर्शन की, उन्हें शिक्षा से जुड़ी आवश्यक जानकारियां दी, परामर्श दिया और इंटर्नशिप करने में उनकी मदद की। भारत भर के 60 से ज्यादा शहरों के बच्चों ने उनके मार्गदर्शन में रोजगार योग्य कौशल सीखा है। यह सभी काम शुभम ने सामाजिक प्रभावशीलता को बढ़ाने और समाज में युवाओं के ठोस नेतृत्व के लिए किया। सिर्फ इतना ही नहीं, कोरोना महामारी जैसी भीषण परिस्थिति में भी उन्होंने अपने एनजीओ राइजिंग यूथ फाऊंडेशन के स्वयंसेवकों के साथ मिलकर चौंबिसों घंटे लोगों की हरसंभव मदद की।
अपनी सारी उपलब्धियों का श्रेय माता-पिता को
शुभम बताते हैं कि उनकी अब तक की सभी उपलब्धियों और सफलताओं के पीछे उनके माता-पिता का हाथ है। वे कहते हैं कि “इतनी कम उम्र से एनजीओ क्षेत्र में काम करना मेरे लिए सामान्य या आसान नहीं था। जाहिर सी बात है कि वर्तमान में चल रहे सामाजिक उद्यमिता और तमाम क्रियान्वयन को हमारे माता-पिता वाली पीढ़ी आसानी से नहीं समझ पाती। खासकर तब जब मैं एक छोटे से गांव से आता हूं। इतने सारी असुरक्षाओं के बाद भी मां-पापा ने मेरे हर फैसले का साथ दिया और मुझ पर हमेशा विश्वास बनाए रखा। मैं कई प्रोजेक्ट्स में फेल भी हुआ, लेकिन उन्होंने मुझसे उम्मीदें नहीं छोड़ी। वे दोनों तब भी मेरा हौसला बने रहे जब मैंने उम्मीद छोड़ दी थी।”
अस्पताल से की स्कॉलरशीप इंटरव्यू की तैयारी
शुभम बताते हैं कि वे जीवन में अपनी मां से साहस और अपने पिता से धैर्य और ढृढ़ता सीखते हैं। वे बताते हैं कि “पिछले दो साल मेरे परिवार के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से थकाने वाले रहे हैं। मेरे माता-पिता दोनों ने कोविड-19 से लड़ते हुए 26 दिन अस्पताल में बिताए। इस स्कॉलरशिप के लिए मेरी पूरी तैयारी मैंने अस्पताल में ही रहकर की है। मेरा इंटरव्यू भी तब हुआ जब हैदराबाद में मेरे पिता की एक बड़ी सर्जरी चल रही थी। मैं ऐसे माता-पिता को पाकर खुद को भाग्यशाली मानता हूं, जिन्होंने इतनी विपरित परिस्थितियों और गहरे दुख के दिनों में भी मुझे मेरे सपनों को जीने के लिए प्रेरित किया और मेरा साथ दिया।”
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क्या है शेवनिंग स्कॉलरशिप ?
शेवनिंग स्कॉलरशिप एक अंतरराष्ट्रीय छात्रवृत्ति है, जिसे ब्रिटिश विदेश और राष्ट्रमंडल कार्यालय द्वारा दिया जाता है, जो विदेशी छात्रों को यूनाइटेड किंगडम के विश्वविद्यालयों में नेतृत्व गुणों का अध्ययन करने देता है। हर साल हजारों नेता इन कार्यक्रमों के लिए आवेदन करते हैं, जो इसे सबसे अधिक प्रतिस्पर्धी छात्रवृत्तियों में से एक बनाता है। स्वीकृति दर केवल 1-2% है, जिसका अर्थ है कि 100 में से केवल 1-2 आवेदक ही सफलतापूर्वक चयनित होता है।
छात्रवृत्ति समिति छात्रों के जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण, उनके विचारों की स्पष्टता और अभिव्यक्ति के आधार पर उनके नेतृत्व कौशल का मुल्यांकन करती है। विकासशील देशों की मदद करने के उद्देश्य से, स्कॉलरशिप टीम उन असली रत्नों को चुनती है जो अपने देश की बेहतरी के लिए काम कर सकते हैं। चयनित प्रतिभागी को लगभग 1.5 लाख रुपये का मासिक स्टाइपेंड दिया जाता है और वीजा, बीमा शुल्क, यात्रा लागत, शिक्षण शुल्क भी इस छात्रवृत्ति के तहत कवर किया जाता है।
अपने अद्वितीय योगदानों से इस पीढ़ी के लिए चेंजमेकर साबित होंगे शुभम
शेवनिंग स्कॉलरशिप शुभम के लिए पहला सम्मान नहीं है, बल्कि उन्हें फर्जी खबरों से बचने व निपटने के तरीकों को लेकर शुरू किए गए रिसर्च प्रोजेक्ट के लिए भी साउथ कोरिया के हन्यांग यूनिवर्सिटी द्वारा हयांग चेंजमेकर स्कॉलरशिप से भी सम्मानित किया गया है। इसके अलावा, उन्हें थाईलैंड और फिलीपींस में यूएनडीपी थाईलैंड और एशियाई विकास बैंक द्वारा आयोजित एशिया प्रशांत युवा विनिमय कार्यक्रम के लिए एक भारतीय प्रतिनिधि के रूप में चुना गया था।