हर वर्ष 12 जनवरी के दिन स्वामी विवेकानंद जी का जन्मदिन( birthday) राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वामी जी ने अपने जीवन काल कई महत्वपूर्ण विषयों( subject) को आम-जन तक पहुंचाने का कार्य किया था। अपनी पुस्तक कर्मयोग में कर्म की महत्ता को बताते हुए स्वामी विवेकानंद ने कहा है।
अक्सर लोग कहते हैं कि इस बात का आविष्कार किया गया। वास्तव में यह आविष्कार ही कर्म है, और इससे मिलने वाली जानकारी ज्ञान है। जैसे-जैसे आविष्कार होता जाता है।
बचपन से ही बहुत बुद्धिमान थे स्वामी विवेकानंद
स्वामी जी बचपन से ही बहुत बुद्धिमान थे. कहा जाता है कि मां के आध्यात्मिक प्रभाव और पिता के आधुनिक दृष्टिकोण के कारण ही स्वामी जी को जीवन अलग नजरिए से देखने का गुण मिला।स्वामी जी के पिता कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक वकील थे. उनके दादा दुर्गाचरण दत्त संस्कृत और फारसी भाषा के विद्वान थे और 25 वर्ष की आयु में साधु बन गए थे।
उसकी योग्यता और चरित्र का प्रमाण नहीं समझना चाहिए
स्वामी विवेकानंद का मानना है, कि किसी व्यक्ति की बहुत बड़ी उपलब्धि को उसकी योग्यता और चरित्र का प्रमाण नहीं समझना चाहिए। जिस तरह कई छोटी-छोटी लहरों से बनने वाले बड़े स्वर को हम समुद्र की विशाल ध्वनि समझ लेते हैं, और उस ध्वनि को समुद्र की विशालता का प्रतीक मान लेते हैं। जो कि सही नहीं है।
ये शब्द जिसको पढ़ युवाओं में आया ऊर्जा की लहर
खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।
तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता, कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता। तुमको सब कुछ खुद अंदर से सीखना हैं। आत्मा से अच्छा कोई शिक्षक नही हैं।
सत्य को हज़ार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा।
बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप हैं।
ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हमही हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार हैं।