नई दिल्ली। देश की सर्वोच्च अदालत ने केंद्र की टीकाकरण नीति को सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने 18-44 वर्ष की आयु के वैक्सीनेशन नीति को प्रथमदृष्टया अतार्किक बताया है। कोर्ट में केंद्र सरकार की इस नीति को चुनौती दी गई है।
कई राज्य पहले ही मांग कर चुके हैं कि केंद्र सरकार को 45 साल से अधिक उम्र के लोगों की तरह युवाओं के टीकाकरण की जिम्मेदारी भी अपने ऊपर लेना चाहिए। अभी केंद्र सरकार ने यह जिम्मेदारी राज्यों पर डाली है। राज्यों को कोरोना की वैक्सीन की खरीद के लिए कंपनियों से संपर्क साधने को कहा गया है।
दिल्ली समेत कई राज्यों ने कोविड वैक्सीन पाने के लिए ग्लोबल टेंडर भी निकाले हैं, लेकिन मॉडर्ना-फाइजर जैसी विदेशी कंपनियों ने कहा है कि वे केवल संघीय (केंद्रीय) सरकारों के साथ डील करती हैं।जबकि देश में बन रही सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोविशील्ड और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन भी पर्याप्त मात्रा में राज्यों को उपलब्ध नहीं हो पा रही है।
कई राज्य सरकारों ने कहा है कि युवाओं के टीकाकरण की जिम्मेदारी भी केंद्र सरकार को उठानी चाहिए। कोरोना के कारण राज्यों की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा है और वे हजारों करोड़ रुपये वैक्सीन पर खर्च करने की स्थिति में नहीं हैं। राज्यों द्वारा ग्लोबल टेंडर जारी करने के बावजूद लॉजिस्टिक्स, संवैधानिक गारंटी समेत कई अड़चनों के कारण विदेशी कंपनियां राज्य सरकारों से वैक्सीन को लेकर डील करने से हिचकिचा रही हैं।
जबकि राज्य आशंका जता रहे हैं कि कोरोना की तीसरी लहर के पहले अगर उनके क्षेत्र में पर्याप्त वैक्सीनेशन नहीं हुआ तो उसका खामियाजा दूसरी लहर की तरह भुगतना पड़ेगा। टीके के अलग-अलग दामों को लेकर भी कोर्ट ने हैरानी जताई है।
केंद्र को घरेलू कंपनियां 150 रुपये प्रति डोज और राज्यों को यह 300 से 600 रुपये प्रति डोज में मिल रही है। निजी अस्पतालों को यह 600 से 1200 रुपये में उपलब्ध हो रही है। पर्याप्त टीके न होने के कारण कई राज्यों में युवाओं का टीकाकरण अभियान बंद पड़ा है, जो जून के मध्य में ही रफ्तार पकड़ सकता है।