विलासपुर। कहते है कि कलेक्टर जनता के सेवक है, पर ये देखिये पूरा अमला जलभराव के बाद यहाँ बंगले में सफाई और नाले की सफाई और मरम्मत में जुटा है, वही इस लापरवाही से पीड़ित और जलभराव से रतजगा कर चूल्हा चावल गवाने वाले नागरिको को देखने वाला कोई नही है। नाले-नालियां भरे पड़े है और सफाई टैक्स यूजर चार्ज देने वाले शहरी खुद नाली साफ कर निगम प्रशासन के अफसर और जनप्रतिनिधियों को कोष रहे है।
ये नजारा सिविल लाइन रॉड के कलेक्टर बंगले के मुख्यद्वार का है। यहाँ गुरुवार को नाले नालियों की सफाई न होने के कारण घुटने तक पानी भरा और गेट तक दुब गया था। मामला कलेक्टर बंगला का है इसलिए खुद के घर मे पानी भरने के बावजूद पहले कलेक्टर बंगले में कर्मचारियों की फौज भेज दी गयी। बंगले में लगे नगर पालिक निगम के कर्मचारी अंदर से बाहर तक गेट रोड को भी प्रेशर मशीन से धुलाई करने लगे रहे तो दूसरी टीम डेमेज नाले के मरम्मत में लगी रही।
क्षतिग्रस्त नाले के मर्मत में लगे मजदूर
अब दूसरी तस्वीर देखिये जहाँ आम करदाता निवास करते है। नाले की सफाई पता नही कब हुई थी, तभी तो एक नागरिक के घर बाहर भरे नाले का मलबा खुद निकलने मशक्कत कर रहा। सवाल यह उठ रहा कि इनके लिए सफाई की व्यवस्था क्यो नही, क्यो वार्डो के गली मोहल्लो में पसरी गन्दगी की चिंता निगम को नही। आखिर मॉनिटरिंग की क्या व्यवस्था है, करोड़ो के ठेके लेकर मशीनीकृत और मैनुअल सफाई का ठेका लेने वाली, कचरे का डोर टू डोर संकलन करने वाली दीगर प्रांत की फर्म और 30 लाख मासिक में नाले नालियों की सफाई के ठेका श्रमिक कहा है, है भी की केवल रजिस्टर में है और है तो करोड़ो की सफाई के बाद शहर की ये दुर्गति क्यो। क्यो विपक्ष में थे तो पानी भरने पर हंगामा मचाते थे अब सत्ता की मलाई मिलने के बाद चुप्पी क्यों।
क्या यही स्मार्ट सिटी है दीवारों पर पेंटिंग और सुन्दरीकरण पर करोड़ो खर्च करने के बजाय इन अव्यवस्थाओ को सुधारने पहल क्यो नही।
पूछता है नागरिक की वो सत्ता में थे तो शहर की बनावट को कटोरा बताते ये भी वही राग अलाप रहे तो फिर करोड़ो के नाले- नालियों के बजाए इसके लिए प्लानिग क्यो नही। क्या धान के कटोरे को गन्दे और बदबूदार नाले में तब्दील क्यो होने दिया जा रहा।