कोरबा। 31 दिसंबर की रात ठीक 12 बजे ताप बिजली उत्पादन कंपनी की कोरबा पूर्व ताप विद्युत संयंत्र को बंद कर दिया गया। 45 साल के लंबे सफर में इस संयंत्र ने न केवल अविभाजित मध्य प्रदेश को रोशन किया। बल्कि देश के कई अन्य राज्यों को बिजली आपूर्ति की। 50-50 मेगावाट की चार इकाइयां दो साल पहले ही बंद कर दी गई थीं।
भारत हैवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड (बीएचईएल) के सहयोग से कोरबा पूर्व ताप विद्युत संयंत्र परिसर में वर्ष 1976 और 1981 में 120-120 मेगावाट की दो इकाइयां स्थापित की गई थीं। इसके साथ ही कोरबा को ऊर्जा राजधानी के रूप में पहचान मिली। इस इकाइयों से औसतन 90-90 मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा था। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने अब छत्तीसगढ़ राज्य ऊर्जा उत्पादन कंपनी लिमिटेड (सीएसपीजीसीएल) के अधीन संचालित संयंत्र से प्रदूषण अधिक होने पर एतराज जताते हुए राज्य सरकार से बंद करने की सिफारिश की थी।
इसके बाद दो साल पहले 50-50 मेगावाट की चार इकाइयों को बंद किया जा चुका है। अब 31 दिसंबर की रात 12 बजे संयंत्र को पूरी तरह बंद कर दिया गया। दो इकाइयों में वर्तमान में विद्युत कंपनी के 454 नियमित कर्मचारी व 550 ठेका कर्मी कार्यरत हैं। इनमें से 150 अधिकारी-कर्मचारियों का स्थानांतरण हसदेव ताप विद्युत संयंत्र, कंपनी मुख्यालय रायपुर व डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ताप विद्युत गृह में किया जा चुका है। 50-50 मेगावाट की चार बंद इकाइयों को रायपुर की इंद्रमणी मिनरल प्राइवेट लिमिटेड ने स्क्रेप के रूप में 75 करोड़ रुपये में खरीदा है।